पूर्वी लद्दाख के सीमांत भारतीय इलाक़ों में चीनी सेना द्वारा घुसपैठ कर अड्डा जमाए हुए साढ़े तीन महीने से अधिक हो चुके हैं और अबतक के संकेत यही हैं कि चीन भारत से कोई बीच का रास्ता तलाश कर समझौता कर लेने पर अड़ा हुआ है। इसका मतलब है कि चीनी सेना कुछ इलाक़ों में तो यथास्थिति बहाल कर देगी लेकिन देपसांग, पैंगोंग त्सो झील के भारतीय इलाक़े पर अपना क़ब्ज़ा नहीं छोड़ेगी।गुरुवार को दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों के संयुक्त सचिव स्तर की वर्किंग मैकेनिज़्म (डब्ल्यूएमसीसी) की चौथे दौर की बातचीत में चीन अपने सैनिकों को पाँच मई से पहले की यथास्थिति बहाल करने पर सहमति देगा, इसकी उम्मीद कम ही है।
चीनी घुसपैठ: पहाड़ जैसी चुनौती है लद्दाख की पहाड़ियों पर सेना की तैनाती
- विचार
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- रंजीत कुमार
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- 20 Aug, 2020
सियाचिन की चौकियों पर तो एक साथ केवल दो तीन दर्जन सैनिक होते हैं और बेस कैम्प पर उनके लिये बनाई गई रोज़मर्रा की सामग्री सैन्य चौकियों पर हेलिकॉप्टरों से पहुँचाई जाती है। इन हेलिकॉप्टरों की एक उड़ान पर ही चालीस-पचास हज़ार रुपये का इंधन ख़र्च हो जाता है। लेकिन पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चोटियों की चौकसी के लिये तैनात एक साथ हज़ारों भारतीय सैनिकों को इन सब की नियमित सप्लाई कैसे होगी।
