भारत में आज की राजनैतिक लड़ाई के उत्स तक यदि जाना है तो इतिहास के तथ्यों को खंगालने और इस पर एक सरसरी नज़र डाले बिना यह संभव नहीं है। सच तो यही है कि सोलवीं से सत्रहवीं शताब्दी के जिस दौर से हम गुजर रहे थे वह कूपमंडूपता, सामन्ती व कृषि व्यवस्था का दौर था। सभी भारतीय भाषाओं के मध्ययुगीन कवि अपनी रचनाओं, अपनी वाणी में समाज में व्याप्त जकड़न, धार्मिक पाखंड, अंधविश्वास, रूढ़िवादी जातीय भेदभाव व कठमुल्लापन आदि के खिलाफ भले ही तल्ख आवाज उठा रहे थे, पर इन परिस्थितियों को बदलने के लिये कोई भौतिक आधार नहीं था।