अपने देश भारत में सत्ताधारी राजनीतिक पार्टियों के लिए महात्मा गाँधी के राजनीतिक दर्शन को अपनी राजनीति का आधार बताना फ़ैशन है। कांग्रेस, बीजेपी और ग़ैर-कांग्रेस सरकारें इस देश में राज कर चुकी हैं। इंदिरा गाँधी के समय में तो कांग्रेस भी गाँधीवाद के रास्ते से बिछड़ गई थी। आरएसएस ने तो ख़ैर गाँधी को कभी अपना नहीं माना। लेकिन सत्ता में आने के बाद कांग्रेस के बड़े नेताओं, महात्मा गाँधी, सरदार पटेल और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को अपनाने का सत्ताधारी पार्टी की तरफ़ से अभियान चल रहा है। इस बात की पड़ताल करना ज़रूरी है कि क्या बीजेपी महात्मा गाँधी को अपना बना पायेगी।
क्या आरएसएस और बीजेपी महात्मा गाँधी को अपना बना पाएँगे?
- विचार
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- 30 Jan, 2021

आरएसएस के लोगों के ऊपर आरोप है कि उन्होंने महात्मा जी की हत्या के बाद कई जगह मिठाइयाँ भी बाँटी। इस बात को आरएसएस वाले शुरू से ही ग़लत बताते रहे हैं। उस वक़्त के आरएसएस के मुखिया एम. एस. गोलवलकर को भी महात्मा गाँधी की हत्या की साज़िश में शामिल होने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था। अंग्रेजी की ग़ुलामी से हिंदुस्तान को आज़ादी दिलाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 151 वीं जयंती पर पढ़िए यह लेख।
महात्मा गाँधी को गुज़रे 71 साल हो गए। 30 जनवरी 1948 के दिन दिल्ली में प्रार्थना के लिए जा रहे महात्मा जी को एक हत्यारे ने गोली मार दी थी और ‘हे राम’ कहते हुए वह स्वर्ग चले गए थे। 30 जनवरी के पहले भी उनकी जान लेने की कोशिश हुुई थी। बीस जनवरी 1948 के दिन भी उसी बिरला हाउस में बम काण्ड हुआ था, जहाँ दस दिन बाद उनकी हत्या कर दी गई। उनकी हत्या के बाद पूरा देश सन्न रह गया था। आज़ादी की लड़ाई में शामिल सभी राजनीतिक जमातें दुःख में डूब गई थी। ऐसा इसलिए हुआ था कि 1920 से 1947 तक महात्मा गाँधी के नेतृत्व में ही आज़ादी की लड़ाई लड़ी गई थी। लेकिन जो जमातें आज़ादी की लड़ाई में शामिल नहीं थीं, उन्होंने गाँधी जी की शहादत पर कोई आँसू नहीं बहाए। आरएसएस पर यह आरोप है कि उसने गाँधी की हत्या के बाद आँसू नहीं बहाए थे।
गाँधी की हत्या की साज़िश
आरएसएस की सहयोगी राजनीतिक पार्टी उन दिनों हिन्दू महासभा हुआ करती थी। हिन्दू महासभा के कई सदस्यों की साज़िश से ही महात्मा गाँधी की हत्या हुई थी। हिन्दू महासभा के सदस्यों पर ही महात्मा गाँधी की हत्या का मुक़दमा चला और उनमें से कुछ लोगों को फाँसी हुई, कुछ को आजीवन कारावास हुआ और कुछ तकनीकी आधार पर बच गए। नाथूराम गोडसे ने गोलियाँ चलायी थीं, उसे फाँसी हुुई।