अगर कोई उग्रवादी संगठन भारत के किसी भूभाग पर सैन्य नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास करे तो सरकार को क्या करना चाहिए?


ऐसा संगठन अगर अपने प्रभाव वाले इलाके की आज़ादी का ऐलान कर दे तो सरकार को क्या कार्रवाई करना चाहिए? 

ज़ाहिर है, कोई भी संप्रभु सरकार इसे बर्दाश्त नहीं कर सकती। इसे देश के ख़िलाफ़ युद्ध की घोषणा मानते हुए वह कड़ी से कड़ी सैन्य कार्रवाई करेगी। राष्ट्रीय अखंडता पर उठे किसी भी सवाल का यही जवाब हो सकता है। इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि सरकार किस रंग की या किस पार्टी की है। यह मसला राजनीति से ऊपर है।

 
यह देखना दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस, खासतौर पर गांधी परिवार पर हमला करने की झोंक में इस मर्यादा को भूल गये। लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस का जवाब देते हुए उन्हें तीन महीने से मणिपुर को अग्निकुंड बनाने वालों की शिनाख़्त करने का ख़्याल नहीं आया।

इसके बजाय वे 57 साल पहले यानी 1966 में मिजो उग्रवादियों के ख़िलाफ़ हुई सैन्य कार्रवाई पर सवाल उठाते नज़र आये। 

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मिजोरम की आज़ादी की घोषणा करने वालों के ख़िलाफ़ तब कड़ी सैन्य कार्रवाई की इजाजत दी थी जिसे मौजूदा प्रधानमंत्री ‘गुनाह’ की तरह पेश कर रहे हैं। 

क्या ये सवाल पूछा जा सकता है कि तब मोदी जी प्रधानमंत्री होते तो मिजोरम की आज़ादी की घोषणा करने वालों के साथ कैसा बर्ताव करते?

प्रधानमंत्री जिस अंदाज़ में इतिहास को लोकसभा में तोड़ते-मरोड़ते हुए दिखे हैं, उसे देखते हुए यह जानना ज़रूरी है कि किन परिस्थिति में वायुसेना के विमानों को आइजोल पर बमबारी करनी पड़ी थी