“मणिपुर में लोगों को मारकर भारत माता की हत्या की गयी...आपने मेरी माँ की हत्या की है...आप देशप्रेमी नहीं देशद्रोही हो!”
राहुल गाँधी का संसद में दिया गया ये बयान बीजेपी और उसके वैचारिक स्रोत आरएसएस पर किया गया अब तक का सबसे तीखा हमला है। महात्मा गाँधी की हत्या के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व ने आरएसएस को देशद्रोही नहीं कहा था, लेकिन राहुल गाँधी के सामने कोई हिचक नहीं है। उन्होंने मणिपुर में लगी आग के मद्देनज़र प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी और बीजेपी की डबल इंजन सरकार की नाकामी को भारत के प्रति द्रोह से जोड़कर बीजेपी की देशभक्ति को सवालों के घेरे में ला दिया है।
राहुल गाँधी के इस अंदाज़ ने ‘भारत के विचार’ को प्रबल रूप में बीच बहस ला दिया है। मोदी सरकार पर ‘भारत माता की हत्या’ करने का आरोप लगाकर उन्होंने साफ़ कर दिया है कि ‘राष्ट्रवाद’ पर बीजेपी की इजारेदारी उन्हें बरदाश्त नहीं है। ग़ौर से देखें तो राहुल के भाषण में पं. जवाहरलाल नेहरू और डॉ. आंबेडकर की वाणी गूँज रही थी जो भारत माता की तस्वीर पूजने को फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद क़रार देती है। राहुल ने अपने भाषण के ज़रिए बीजेपी के चेहरे से इसी फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद के नक़ाब को नोच फेंका है। राहुल का भाषण एक नये क़िस्म के वैचारिक युद्ध का ऐलान है जो तय करेगा कि भारत के भविष्य की तस्वीर कैसी होगी।
बीजेपी ने समावेशी भारत के संवैधानिक संकल्प का हमेशा विरोध किया है लेकिन हमेशा अपने विचारों को देशभक्ति के आवरण में पेश किया। हिंदी के महान लेखक प्रेमचंद ने लिखा था कि सांप्रदायिकता हमेशा संस्कृति की खाल को ओढ़कर निकलती है। यह बात बीजेपी के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा पर पूरी तरह फिट बैठती है। अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ अपने जन्म से ही नफ़रती अभियान चलाने वाली बीजेपी ने हमेशा कोशिश की है कि उसे ‘देशभक्ति का पर्याय’ माना जाये। उसके नेताओं के भाषणों में ‘राष्ट्र’ का वंदन-अभिनंदन अनिवार्य रूप से मौजूद रहता है। उनके लिए ‘राष्ट्र’ और ‘भारत माता की जय’ जैसे नारे ताक़त दिखाने का एक ज़रिया होते हैं। हालत ये है कि अब दंगों में भी भारत माता की जय के नारे लगाये जा रहे हैं। राहुल गाँधी ने यह कहकर कि मणिपुर में ‘भारत माता की हत्या’ हुई है, बीजेपी के राष्ट्रप्रेम की इस अवधारणा पर ही सवाल उठा दिया है। बीजेपी की ओर से इस पर जैसी तिलमिलाहट भरी प्रतिक्रिया हुई है, उसने साबित किया है कि राहुल का तीर निशाने पर लगा है। बीजेपी की ओर से ‘भारत माता की हत्या’ को एक आपराधिक वक्तव्य की तरह पेश किया जा रहा है, लेकिन इससे यह बहस सतह पर आ गयी है कि आख़िर भारत माता है कौन?
राहुल गाँधी ने कहा है कि भारत लोगों की आवाज़ का नाम है! लोगों का दुख और कष्ट है भारत! मणिपुर की महिलाएँ भारत माता हैं। अगर उनके साथ अन्याय होता है तो यह भारत माता के साथ अन्याय है। उनकी हत्या भारत माता की हत्या है। ग़ौर से सुनें तो राहुल अपने इस भाषण के ज़रिए भारत माता को लेकर पं. नेहरू के विचार को ही नये अंदाज़ में सामने ला रहे हैं।
“क्या वह सुंदर स्त्री, जिसका हमने काल्पनिक चित्र खड़ा किया है, नंगे बदन और झुकी हुई कमरवाले, खेतों, और कारख़ानों में काम करने वाले किसानों और मजदूरों का प्रतिनिधित्व करती है? या वह उन थोड़े से लोगों के समूह का प्रतिनिधित्व करती है, जिन्होंने खुद युगों से जनता को कुचला और चूसा है, उस पर कठोर से कठोर रिवाज लाद दिये हैं और बहुतों को अछूत तक क़रार दे दिया है?” (जवाहरलाल नेहरू एन ऑटोबायोग्राफी, पेज 448)
ज़ाहिर है, नेहरू जी किसी काल्पनिक चित्र को भारत माता मानने को तैयार नहीं थे। भारत माता की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उन्होंने डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया में लिखा है कि जब स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान लोग भारत माता का जयकारा लगाते थे तो वे पूछते थे कि ये भारत माता कौन है। फिर इसका वे खुद जवाब देते हुए कहते थे-
“हिंदुस्तान के नदी और पहाड़, जंगल और खेत, जो हमें अन्न देते हैं, ये सभी हमें प्यारे हैं। लेकिन असल में भारत माता हैं, वे सारे मुल्क में फैले करोड़ों हिंदुस्तानी, भारत माता दरअसल यही करोड़ों लोग हैं और इनकी जय ही है, भारत माता की जय!” (द डिस्कवरी ऑफ इंडिया, पेज 53)
ऐसे में राहुल गाँधी मणिपुर की महिलाओं को भारत माता बताकर और वहाँ भारत माता की हत्या की बात कहकर पं. नेहरू की ही तरह देश को समझा रहे हैं कि भारत माता कोई तस्वीर नहीं, देश के लोग हैं।
यही नहीं, जब वे लोगों के दुख तकलीफ़ में ‘भारत’ को खोजते हैं तो डॉ. आंबेडकर के संविधान सभा में दिये गये अंतिम भाषण की भी याद दिलाते हैं जिसमें कहा गया था कि भारत को एक राष्ट्र होने के लिए बंधुत्व की ज़रूरत सबसे ज़्यादा है। अगर भारत के एक कोने में रहने वाले लोग दूसरे कोने के लोगों की पीड़ा को महसूस नहीं कर सकते तो भारत कभी राष्ट्र नहीं हो सकता।
राहुल गाँधी का यह भाषण 9 अगस्त को हुआ जिस दिन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ था। आरएसएस ने आज़ादी की लड़ाई के उस महत्वपूर्ण मोड़ से अपने को अलग ही नहीं रखा था, बल्कि अंग्रेज़ों का खुलकर साथ दिया था। बीजेपी के प्रात:स्मरणीय श्यामा प्रसाद मुखर्जी तब बंगाल सरकार के मंत्री के रूप में इस आंदोलन को कुचलने की योजना वायसरॉय के सामने पेश कर रहे थे। अटल बिहारी वाजपेयी हों या लालकृष्ण आडवाणी या फिर दीनदयाल उपाध्याय, ये सभी युवा होने के बावजूद अंग्रेज़ों भारत छोड़ो का नारा लगाने का साहस नहीं दिखा सके थे। लेकिन आज प्रधानमंत्री मोदी विपक्ष को निशाना बनाते हुए नये सिरे से ‘क्विट इंडिया’ का नारा लगवा रहे हैं। राहुल गाँधी के भाषण के दौरान भी वंशवाद से लेकर भ्रष्टाचार को जोड़ते हुए क्विट इंडिया का नारा बीजेपी सांसद लगाते रहे। लेकिन वे भूल गये कि क्विट इंडिया कहते ही इस आंदोलन में उनकी अंग्रेजपरस्त भूमिका के पन्ने भी फड़फड़ाने लगते हैं। राहुल गाँधी ने उन्हें देशद्रोही बताकर उनका वर्तमान ही नहीं अतीत भी बेपर्दा कर दिया है।
राहुल गाँधी का यह कहना कि मणिपुर में उनकी माँ की हत्या हुई है, देश को झकझोर गया है। यह मणिपुर की महिलाओं के लिए ही नहीं, उनकी पीड़ा से विचलित देश भर की महिलाओं के लिए बड़ा संदेश है। हर संवेदनशील व्यक्ति अब पूछेगा कि अगर लोग मारे जा रहे हैं, बेघर हो रहे हैं और महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहा है तो फिर सरकार देशभक्त कैसे हो सकती है? असल देशभक्त तो वही हो सकता है जो लोगों की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझे। उनका दुखदर्द बाँटे न कि मौन रहकर आग को हवा देने में जुटा रहे।
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