10वें दौर की वार्ता में किसानों के लिए केंद्र सरकार का यह प्रस्ताव हैरान करने वाला था कि विवादास्पद तीन कृषि क़ानूनों को एक से डेढ़ साल के लिए स्थगित कर दिया जाएगा। 11वें दौर की बातचीत से पहले इस प्रस्ताव को ठुकराने का मतलब है ‘अड़ियल’ कहलाना और स्वीकारने का मतलब है कुर्बानियों से युक्त आंदोलनकारियों के अरमानों पर कुठाराघात। किसानों की संयुक्त संघर्ष समिति ने केंद्र सरकार के ‘नरम’ रुख पर गरम रुख अपनाने का फ़ैसला किया और केंद्र के प्रस्ताव को ठुकरा दिया गया।
क्यों झुकी सरकार : चिंता आंदोलन की या चुनावों की?
- विचार
- |
- |
- 22 Jan, 2021

10वें दौर की वार्ता में किसानों के लिए केंद्र सरकार का यह प्रस्ताव हैरान करने वाला था कि विवादास्पद तीन कृषि क़ानूनों को एक से डेढ़ साल के लिए स्थगित कर दिया जाएगा। सरकार ऐसा करने को तैयार क्यों हुई?
‘नरमी’ दिखा रही सरकार के प्रस्ताव की रणनीति दरअसल बहुत गरम है। इस रणनीति का संबंध सीधे तौर पर विधानसभा चुनावों से है। अगले एक से डेढ़ साल में जिन प्रांतों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं उनमें शामिल हैं पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल, पुद्दुचेरी, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, गोवा, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश और गुजरात। इन 11 राज्यों में से 7 में बीजेपी की सरकार है। बीजेपी को लगता है कि अगर तीनों कृषि क़ानून डेढ़ साल तक स्थगित रहते हैं तो इन चुनावों में किसानों की नाराज़गी जैसी स्थिति नहीं झेलनी पड़ेगी।