यूपी का कोई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मुख्यमंत्री, चीफ़ सेक्रेटरी (होम) और डीजीपी को गोपनीय पत्र लिख कर यह बताने लग जाए कि प्रदेश में आईपीएस और कतिपय फ़र्ज़ी पत्रकारों की एक ऐसी लॉबी काम कर रही है जो 50 से 80 लाख रुपये लेकर ज़िलों में एसएसपी की पोस्टिंग-ट्रांसफर कराती है तो इसे एक गंभीर मामले के रूप में देखा जाना चाहिए। यह मामला तब और भी गंभीर बन जाता है जब उक्त अधिकारी की चिट्ठी पर किसी सकारात्मक जाँच की जगह उसी को दंड देने की नीयत से निलंबन का आदेश थमा दिया जाता हो।
विकास की मदद करने वाले सफ़ेदपोश नेताओं-अफ़सरों को कब पकड़ेगी योगी सरकार?
- विचार
- |
- |
- 9 Jul, 2020

छोटी मछलियों को जाल डालकर पकड़ लेना तो समझ में आता है। सवाल यह है कि क्या बड़ी मछलियों के इर्द-गिर्द भी काँटा फेंका जाएगा? क्या उस बड़ी और ताक़तवर लॉबी के शिकंजे को भी चकनाचूर किया जाएगा जो रुपये के लेन-देन से ट्रांसफर-पोस्टिंग का खेल रचाता है?
यह लॉबी कितनी सशक्त होगी, इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जाना चाहिए कि निलंबन के 7 महीने बाद, अभी भी उक्त अधिकारी निलंबन की प्रताड़ना झेल रहा है। दूसरी ओर यह भी कम गंभीर मामला नहीं है कि एक डीएसपी द्वारा विकास दुबे के विरुद्ध गहरी आपराधिक गतिविधियों की चेतावनी को लगातार नज़रअंदाज़ करते चले जाने वाले एसएसपी को एसटीएफ़ में डीआईजी का प्रमोशन मिलने के बाद उसी विकास दुबे द्वारा किये गए 8 पुलिस वालों के जघन्य हत्याकांड की जाँच भी सौंप दी जाए और 4 दिन की मीडिया छीछालेदर के बाद बमुश्किल उक्त अधिकारी को स्थानांतरित करना पड़े।