देश में पश्चिम बंगाल के बाहर बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जो इस सच्चाई के बावजूद ममता बनर्जी को जीतता हुआ देखना चाहते हैं कि उनके मन में तृणमूल कांग्रेस की नेता के प्रति कई वाजिब कारणों से ज़्यादा सहानुभूति नहीं है। वे ममता की हार केवल इसलिए नहीं चाहते कि नरेंद्र मोदी की जीत उन्हें ज़्यादा असहनीय और आक्रामक लगती है।
और कितने विभाजन शेष हैं अभी?
- विचार
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- 29 Mar, 2025

चुनाव-परिणामों से उपजने वाली चिंता हक़ीक़त में तो यह होनी चाहिए कि क्या ममता के हार जाने की स्थिति में पहले नंदीग्राम और फिर बंगाल के दूसरे इलाक़ों में मिनी पाकिस्तान चिन्हित किए जाने लगेंगे? बंगाल के और कितने विभाजन होना अभी शेष हैं?
उनके मन में ऐसी कोई दिक़्क़त केरल और तमिलनाडु को लेकर नहीं है। असम को लेकर भी कोई ज़्यादा परेशानी नहीं हो रही है। इन राज्यों के चुनावी भविष्य पर ‘कोऊ नृपु होय, हमें का हानि’ वाली स्थिति है। सभी की नजरें बंगाल पर हैं।
मोदी से ज़्यादा नाराज़गी
नाराज़गी ममता और मोदी दोनों से है, पर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 में दूसरे के प्रति ज़्यादा है जो पहले के लिए सहानुभूति पैदा कर रही है। इसका कारण मुख्यमंत्री का ‘एक अकेली महिला’ होना भी हो सकता है। ममता अगर बंगाल में अपनी सत्ता बचा लेती हैं तो उसे उनके प्रति जनता के पूर्ण समर्थन के बजाय मोदी के प्रति बंगाल के हिंदू मतदाताओं में सम्पूर्ण समर्पण का अभाव ही माना जाएगा।