बात कोरोना महामारी को लेकर है। शुरुआत गुजरात से की जानी चाहिए। गुजरात के कथित ‘विकास मॉडल’ को ही अपने मीडिया प्रचार की सीढ़ी बनाकर नरेंद्र मोदी सात साल पहले एक मुख्यमंत्री से देश के प्रधानमंत्री बने थे। गुजरात उच्च न्यायालय ने हाल में कोरोना के इलाज की बदहाली पर एक स्व-प्रेरित याचिका को आधार बनाकर पहले तो यह टिप्पणी की कि राज्य ‘स्वास्थ्य आपातकाल’ की ओर बढ़ रहा है और बाद में उसने प्रदेश सरकार के इस दावे को भी ख़ारिज कर दिया कि स्थिति नियंत्रण में है। बात इसी महीने की है।
मौतों के ‘तांडव’ के बीच निर्मम चुनावी स्नान?
- विचार
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- 16 Apr, 2021
सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़, कोरोना से होने वाली मौतों में हम ब्राज़ील के बाद दूसरे क्रम पर हैं। शवों का जिस तरह से अंतिम संस्कार हो रहा है, सच्चाई कुछ और भी हो सकती है। अस्पतालों में मरीज़ों के इलाज के लिए बिस्तर तो हैं ही नहीं, अब अंतिम संस्कार के लिए शवदाह गृहों में भी स्थान नहीं बचा है।
गुजरात उच्च न्यायालय ने ठीक एक साल पहले भी कोरोना के इलाज को लेकर ऐसी ही एक स्व-प्रेरित जनहित याचिका पर संज्ञान लेते हुए टिप्पणी की थी कि राज्य की हालत एक डूबते हुए टाइटेनिक जहाज़ जैसी हो गई है। तब उच्च न्यायालय ने अपने 143 पेज के आदेश में राज्य के सबसे बड़े अहमदाबाद स्थित सिविल अस्पताल की हालत को एक काल कोठरी या उससे भी बदतर स्थान निरूपित किया था।