‘ये सभी तथ्य एक साथ रखे जाएँ तो स्पष्ट होता है कि महात्मा गाँधी की हत्या में सावरकर और उनके संगठन का ही हाथ था - कपूर कमीशन।’ यह निष्कर्ष उन्हीं ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ के बारे में है जिन्हें बीजेपी सबसे बड़ा देशभक्त बताती है।
सावरकर से नहीं हट सकता महात्मा गाँधी की हत्या का दाग
- विचार
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- 28 May, 2022

1977 में जनता पार्टी में शामिल जनसंघ के दिग्गज नेताओं ने भी सावरकर का नाम नहीं लिया। न ‘भारत रत्न’ की माँग की और न संसद में तसवीर लगवाई। संसद में तसवीर तब लगाई गई जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बन गई। पढ़िए, सावरकर की जयंती पर लेख।
‘कपूर कमीशन’ को पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू या इंदिरा गाँधी ने नहीं, लालबहादुर शास्त्री सरकार ने गठित किया था। सवाल है कि इसकी ज़रूरत क्यों पड़ी? दरअसल, महात्मा गाँधी की हत्या में शामिल गोपाल गोडसे को सजा पूरी होने के बाद अक्टूबर, 1964 में रिहा कर दिया गया था। इस रिहाई का उत्सव मनाने के लिए 11 नवंबर 1964 को पुणे में एक कार्यक्रम रखा गया। इस कार्यक्रम में तरुण भारत के संपादक और लोकमान्य तिलक के पौत्र जी.वी.केतकर ने कहा था कि उन्हें महात्मा गाँधी की हत्या की साजिश की जानकारी थी। केतकर ने कहा था कि नाथूराम गोडसे उनसे अक्सर गाँधी की हत्या के फायदों की चर्चा करता रहता था।