कुछ राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव से पहले आरएसएस और बीजेपी को अचानक दारा शिकोह की याद आई है। ‘जवाहर लाल नेहरू नहीं सरदार पटेल पहले प्रधानमंत्री होते’ की तर्ज पर ‘काश दारा शिकोह सम्राट बनते’ का रोना रोया जा रहा है। आरोप यह भी है कि दारा को इतिहासकारों ने पर्दे में रखा। वे ऐसा क्यों करेंगे, ऐसे सवालों की उन्हें परवाह नहीं।
दारा शिकोह से मुहब्बत, औरंगजेब से नफ़रत क्यों आरएसएस को?
- विचार
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- 18 Sep, 2019

मध्ययुगीन राजाओं या राजतंत्रों को लोकतंत्र या सेक्युलरिज़्म जैसे आधुनिक सिद्धांतों की तुला पर तौलने के पीछे सिर्फ़ बेईमान इरादा ही हो सकता है। कोई भी राजा या बादशाह कभी लोकतांत्रिक या सेक्युलर हो ही नहीं सकता। लेकिन आरएसएस और बीजेपी को अचानक दारा शिकोह की याद आ गई है। ‘काश दारा शिकोह सम्राट बनते’ का रोना क्यों रोया जा रहा है?
11 सितंबर को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में 'एकेडमिक्स फ़ॉर नेशन' के बैनर तले ‘भारत की समन्वयवादी परंपरा के नायक- दारा शिकोह’ पर परिसंवाद में आरएसएस के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि अगर दारा शिकोह मुगल सम्राट बनता तो इसलाम देश में और फलता-फूलता क्योंकि दारा शिकोह में सर्वधर्म समभाव की प्रवृत्ति थी।
सवाल यह उठता है कि क्या आरएसएस के सह सरकार्यवाह वाक़ई किसी ऐसे इसलाम के भारत में फलने-फूलने के पक्ष में हैं जो समन्वयवादी हो और इस परिसंवाद में मुख़्तार अब्बास नक़वी दारा के जिन विचारों को फैलाने की बात कह रहे थे, क्या उस पर उनकी पार्टी खरी उतरती है? या फिर दारा के बहाने औरंगज़ेब को निशाने पर लेने का इरादा है, जिसकी मंदिर तोड़ने वाले कट्टर मुसलमान की छवि ध्रुवीकरण के काम आ सकती है?