10 सितंबर 1928 को साबरमती आश्रम में एक विशेष आयोजन था। आश्रम के युवक संघ ने रूसी लेखक लेव तोलस्तोय के जन्म शताब्दी समारोह का आयोजन किया था। महात्मा गाँधी इस मौके पर तोलस्तोय को 'सत्य की मूर्ति' बताते हुए कहा-
गाँधी के 'आध्यात्मिक गुरु' तोलस्तोय से कैसा ख़तरा मी लॉर्ड?
- विचार
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- 29 Aug, 2019

आज वही तोलस्तोय कठघरे में हैं जिन्हें महात्मा गाँधी अपना 'आध्यात्मिक गुरु' मानते थे। बाम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस सारंग कोतवाल ने वेरनॉन गोंजाल्विस से सवाल किया कि उन्होंने 'दूसरे देश के युद्ध की किताब' अपने घर में क्यों रखी है।
‘अहिंसा के विषय में पश्चिम के लिए जितना तोलस्तोय ने लिखा है, उतना मार्मिक साहित्य दूसरे किसी ने नहीं लिखा। अहिंसा का जितना सूक्ष्म दर्शन और उसका पालन करने का जितना प्रयत्न तोलस्तोय ने किया था, उतना प्रयत्न करने वाला आज हिंदुस्तान में कोई नहीं है और न मैं किसी ऐसे आदमी को जानता हूँ। यह स्थिति मेरे लिए दुखदायक है। यह मुझे नहीं भाती। हिंदुस्तान में ऋषि-मुनियों ने अहिंसा के क्षेत्र में बड़ी-बड़ी खोजें की हैं, परंतु पूर्वजों की उपार्जित पूँजी पर हमारा निर्वाह नहीं हो सकता। उसमें यदि वृद्धि न की जाए तो वह समाप्त हो जाती है।’
लगभग 90 साल बाद वही तोलस्तोय कठघरे में हैं जिन्हें महात्मा गाँधी अपना 'आध्यात्मिक गुरु' मानते थे। 28 अगस्त को बाम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस सारंग कोतवाल ने भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले की सुनवाई के दौरान एलगार परिषद से जुड़े एक्टिविस्ट वेरनॉन गोंजाल्विस से सवाल किया कि उन्होंने 'दूसरे देश के युद्ध की किताब' अपने घर में क्यों रखी है। दरअसल, पुलिस ने कथित माओवादी गोंजाल्विस के घर से जो किताबें ज़ब्त की हैं, उनमें लेव तोलस्ताय का उपन्यास 'वार एंड पीस' भी है जिसे जस्टिस कोतवाल दूसरे देश के युद्ध की किताब बता रहे हैं। पुलिस का कोई कोतवाल इसे सरकार के ख़िलाफ़ युद्ध प्रेरित करने वाली किताब समझता तो बात दूसरी थी, लेकिन 'जस्टिस' कोतवाल की ओर से आने वाला यह सवाल हैरान करने वाला है।