करो या मरो! 1942 की अगस्त क्रांति का यही नारा था जिसने दूर दिखाई पड़ रही आज़ादी की भोर को अगले पाँच साल में हक़ीक़त बना दिया। यह 1857 के बाद सबसे बड़ी क्रांति थी जिसने भारत में अंग्रेज़ी राज पर निर्णायक चोट की थी। पर इस क्रांति के साथ एक सपना भी जुड़ा था जिसे 80 साल बाद आज ज़मींदोज़ होते देखा जा रहा है। 2019 के अगस्त महीने में देश का मुकुट कहा जाने वाला जम्मू-कश्मीर राज्य न सिर्फ़ विभाजित हुआ, बल्कि धरती का स्वर्ग कही जाने वाली घाटी क़ैदख़ाने में तब्दील हो चुकी है। जनता ख़ामोश है और नारा सरकार दे रही है- डरो या मरो!
भारत छोड़ो आन्दोलन: 'डरो या मरो' के दौर में 'करो या मरो' की याद!
- विचार
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- 29 Mar, 2025

कांग्रेस ने 7 अगस्त, 1942 को 'भारत छोड़ो आन्दोलन' शुरू करने का प्रस्ताव पारित किया था। इस आन्दोलन के 80 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष पेशकश।
1942 की अगस्त क्रांति इन अर्थों में अनोखी थी कि इसने महात्मा गाँधी का एक बिलकुल नया रूप दुनिया के सामने रखा था। कहाँ तो कुछ हिंसक घटनाओं की वजह से 1922 में असहयोग आंदोलन वापस ले लेने वाले गाँधी और कहाँ जीवन में पहली बार आम हड़ताल का आह्वान। दरअसल, 1942 की गर्मियाँ आते-आते गाँधी जी एक संघर्षशील मनोस्थिति में पहुँच चुके थे। 16 मई को उन्होंने प्रेस को साक्षात्कार देते हुए कहा - 'इस सुव्यवस्थित अनुशासनपूर्ण अराजकता को जाना ही होगा और यदि इसके परिणामस्वरूप पूर्ण अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होती है तो मैं यह ख़तरा उठाने को भी तैयार हूँ।'