मशहूर ब्रिटिश इतिहासकार ई.एच.कार अपनी चर्चित किताब 'व्हाट इज़ हिस्ट्री' में लिखते हैं कि 'इतिहास भूत और वर्तमान के बीच अविरल संवाद है।' यानी अपने दौर को प्रभावित करने वाला हर विचार या घटना इतिहास का हिस्सा होती है जिनका सिरा आपस में जुड़ता भी है, चाहे प्रभाव सकारात्मक हो या नकारात्मक।
इस लिहाज से लगभग 94 वर्षों से सक्रिय राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों को इतिहास का हिस्सा मानने में कुछ भी ग़लत नहीं है। ख़ासतौर पर तब, जब उसकी विकासयात्रा ने भारतीय राजनीति के आकाश का रंग ही बदल दिया है। लेकिन सवाल इसके स्वरूप का है। नागपुर के राष्ट्रसंत तुकाडोजी महाराज विश्वविद्यालय में बीए हिस्ट्री के दूसरे वर्ष के पाठ्यक्रम में 'राइज़ एंड ग्रोथ ऑफ़ कम्युनलिज्म' नाम से एक पर्चा था जिसे हटाकर 'राष्ट्र निर्माण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका' पढ़ाया जायेगा।
राष्ट्र निर्माण में संघ की भूमिका पर क्यों उठते हैं सवाल?
- विचार
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- पंकज श्रीवास्तव
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- 12 Jul, 2019


पंकज श्रीवास्तव
केंद्र में लगातार दोबारा सरकार बनाने के बाद इतिहास में सम्मानजनक हैसियत पाने की आरएसएस की इच्छा स्वाभाविक है। पर क्या यह सत्य को उलटे बिना संभव है?
पंकज श्रीवास्तव
डॉ. पंकज श्रीवास्तव स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।