अंतरराष्ट्रीय राजनीति के हिसाब से कल तीन महत्वपूर्ण घटनाएँ हुईं। एक तो अलास्का में अमेरिकी और चीनी विदेश मंत्रियों की झड़प, दूसरी मास्को में तालिबान-समस्या पर बहुराष्ट्रीय बैठक और तीसरी अमेरिकी रक्षा मंत्री की भारत-यात्रा। इन तीनों घटनाओं का भारतीय विदेश नीति से गहरा संबंध है। यदि अमेरिकी और चीनी विदेश मंत्रियों के बीच हुई बातचीत में थोड़ा भी सौहार्द दिखाई पड़ता तो वह भारत के लिए अच्छा होता, क्योंकि गलवान-मुठभेड़ के बावजूद चीन के साथ भारत मुठभेड़ की मुद्रा नहीं अपनाना चाहता है। लेकिन अलास्का में दोनों पक्षों ने तू-तू—मैं-मैं का माहौल खड़ा कर दिया है। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के विरुद्ध खुलेआम भाषण दिए हैं।
अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत गूंगी गुड़िया क्यों बना रहे?
- विचार
- |
- |
- 21 Mar, 2021

यह ठीक है कि बीजेपी के पास विदेश-नीति विशेषज्ञों का अभाव है और वह ग़ैर-भाजपाई विशेषज्ञों को संदेहास्पद श्रेणी में रखती है लेकिन हमारा विदेश मंत्रालय कोई ऐसी पहल क्यों नहीं करता, जिससे तालिबान और गनी-अब्दुल्ला सरकार भी सहमत हो। अफ़ग़ानिस्तान में स्वतंत्र चुनाव के बाद जिसकी भी सरकार बने, सभी राष्ट्र उसे मान्यता क्यों न दें?