फ़्रांसीसी क्रान्ति ने इतिहास बदल दिया। राजशाही और सरकार में चर्च की भूमिका को पूरी तरह से ख़त्म कर दिया। पूरी दुनिया को समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का सिद्धान्त दिया। इस क्रान्ति की प्रक्रिया में अकल्पनीय हिंसा हुई। बहुत कम लोगों को याद होगा कि क्रांति के जिन नेताओं ने राजसत्ता को समाप्त करने के लिये जिस हिंसा को जायज़ ठहराया था, वो उसी हिंसा की बलि चढ़ गये। मैक्समीलियन राब्सपियरे क्रांति के आयोजकों में सबसे बड़ा नाम था। पर जिस तरह उसने क्रांति के नाम पर लोगों को गिलोटीन पर चढ़ाया, लोगों की जान ली, उसकी विभीषिका को पढ़-सुनकर दहशत होती है। बाद में उसी राब्सपियरे को घसीटते हुये गिलोटीन पर लाया गया और उसकी गर्दन धड़ से अलग की गयी। ऐसा ही एक नाम ज्या पा मरा का था।

भारतीय मीडिया के नब्बे के दशक के शुरुआती दौर को अगर छोड़ दें तो कभी भी वह सांप्रदायिक नहीं रहा। लेकिन 2014 के बाद से वह खुलेआम मुसलिम विरोधी हो गया है। बहुसंख्यकवाद के नाम पर वह इसलाम के ख़िलाफ़ नफ़रत का माहौल बना रहा है। कोरोना के समय तबलीग़ी जमात पर हमला इसकी एक बानगी भर है...
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।