‘लोकतंत्र’ इस शब्द को बोलते हुये ही नहीं, इस को जीने की तमन्ना की थी तब जब हमारी पीढ़ी जन्म ले रही थी और हमारे माता-पिता की पीढ़ी अंग्रेजों के शासन की मार से विकल किसी तरह राहत की आशा में हाथ पाँव मार रही थी। आदमी के मरने से पहले आशा नहीं मरती और जब तक आशा नहीं मरती संघर्ष घुटने नहीं टेकता क्योंकि जीवित अवस्था में साहस जितना होता है संघर्ष उतना ही सघन होता जाता है।