मशीनें लाचार हैं, क्योंकि वे मानव-निर्मित तकनीक पर निर्भर हैं। इंसान ही उनका जन्मदाता है और वे उसी की ग़ुलामी करती हैं। लेकिन इतिहास गवाह है कि कोई तकनीक न तो चिरंजीवी होती है और न कालजयी। हरेक तकनीक का अपना कार्यकाल होता है। नई तकनीकों से पुरानी का सफ़ाया होता है। ईवीएम भी एक तकनीकी उपकरण है। इसका जीवनकाल पूरा हो चुका है! अब हमें वापस बैलट पेपर यानी मतपत्र की ओर लौटना होगा। यह काम जितनी जल्दी होगा, उतना ही लोकतंत्र फ़ायदे में रहेगा। ताज़ा विधानसभा चुनावों ने उन आरोपों को और पुख़्ता किया है कि ईवीएम में घपला हो सकता है। बेशक यह हुआ भी है! तर्कवादी इसका सबूत चाहेंगे। यह स्वाभाविक है। मेरे पास घपलों के सबूत नहीं हैं। लेकिन प्रति-तर्क ज़रूर हैं।