ग़ज़ा पट्टी पर जारी इज़राइली बमबारी में अब तक क़रीब 9 हज़ार लोग मारे जा चुके हैं। कुल मौतों का लगभग 70 फ़ीसदी महिलाएँ और बच्चे हैं। ‘अमेरिकी-इज़राइल गुट’ को छोड़ दें तो दुनिया के ज़्यादातर देश इसे नरसंहार क़रार देते हुए युद्ध तुरंत रोकने की माँग कर रहे हैं। एक ज़माना था जब भारत शांति के पक्षधर देशों की अगुवाई करता था। लेकिन अफ़सोस उसने युद्ध रोकने को लेकर संयुक्त राष्ट्र महासभा में पेश हुए प्रस्ताव पर वोट नहीं किया। मोदी सरकार शायद भूल गयी कि नरसंहार के समय किसी भी तरह की तटस्थता नरसंहार का पक्ष लेना ही है। भारत शुरू से ही इज़राइली आक्रामकता का विरोध करता रहा है और स्वतंत्र फ़िलिस्तीन का पक्ष उसके लिए ज़ुबानी जमाख़र्च का नहीं बल्कि एक न्यायपूर्ण विश्व की उसकी कल्पना के साथ जुड़ा मामला है।
क्यों दुनिया के बड़े स्तंभकार फ्रीडमैन ने मनमोहन सिंह को याद किया?
- विचार
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- 2 Nov, 2023

इज़राइल को किस तरह हमास के हमले का जवाब देना चाहिए था? आश्चर्यजनक रूप से इस सिलसिले में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को याद किया जा रहा है। जानिए, तीन बार के पुलित्ज़र पुरस्कार विजेता पत्रकार थॉमस एल. फ्रीडमैन ने क्या लिखा है।
भारत की विदेशनीति में आये इस शर्मनाक बदलाव को दुनिया बड़े ग़ौर से देख रही है। भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव का समर्थन न करने को लेकर यह तर्क दिया कि उसमें हमास की आतंकवादी कार्रवाई की निंदा नहीं थी। पर उसमें तो इज़राइली आक्रामकता की भी निंदा नहीं थी। युद्ध रोकने के प्रस्ताव का मतलब लाखों बेगुनाहों, खासतौर पर बच्चों और महिलाओं की जान बचाना था जो हर पल इज़राइली बमबारी का शिकार हो रहे हैं।