थाईलैंड में इन दिनों जैसे विशाल जन-प्रदर्शन हो रहे हैं, वैसे उसके इतिहास में पहले शायद कभी नहीं हुए। लाखों नौजवान बैंकॉक के राजमहल को घेरकर प्रधानमंत्री प्रयुत चन ओत्रा को हटाने की मांग तो कर ही रहे हैं, वे थाईलैंड के राजा महावज्र लोंगकार्न के अधिकारों में भी कटौती की मांग कर रहे हैं।
थाईलैंड: पीएम, राजा के ख़िलाफ़ लाखों नौजवान सड़क पर उतरे
- विचार
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- 24 Oct, 2020

जब विपक्षी दल ‘फ्यूचर फार्वर्ड पार्टी’ने लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत बनाने की मांग की और राजा के असीमित अधिकारों के विरुद्ध आवाज उठाई तो थाईलैंड के सर्वोच्च न्यायालय ने उस पार्टी को ही भंग कर दिया। थाई नौजवानों ने इस क़दम के विरुद्ध जन-आंदोलन छेड़ दिया और अब वह इतना फैल गया है कि फौज़ की भी नाक में दम हो गया है।
2017 में जो नया संविधान बना था, उसने थाईलैंड की फौज़ को तो सर्वोच्च शक्ति संपन्न बना ही दिया था लेकिन उसमें राजा को भी कई अतिरिक्त शक्तियां और सुविधाएं दे दी गई थीं। 1932 में जो क्रांति हुई थी, उसमें थाईलैंड के राजा की हैसियत ब्रिटेन के राजा की तरह नाम-मात्र की रह गई थी लेकिन 2014 में सेना के तख्ता-पलट के बाद राजा को सभी कानूनों के ऊपर मान लिया गया और राज्य की अकूत संपत्तियों पर उनके व्यक्तिगत अधिकार को मान्यता दे दी गई।