तालिबान की तारीफ करना देशद्रोह है, आतंकवाद या कट्टरवाद का समर्थन है? क्या ऐसा करने वालों को हिन्दुस्तान में रहने का अधिकार नहीं है? इसके उलट प्रश्न है कि तालिबान का विरोध किए बगैर क्या कोई देशभक्त नहीं हो सकता या फिर आतंकवाद या कट्टरवाद का विरोधी नहीं हो सकता या फिर लोकतंत्रवादी और प्रगतिशील नहीं हो सकता? दोनों प्रश्नों को मिलाकर देखें तो तालिबान पर हमारी समझ ही क्या हमें लायक या नालायक बनाएगी?
तालिबान से सहानुभूति या विरोध गद्दारी या देशभक्ति कैसे?
- विचार
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- 20 Aug, 2021
हिन्दुस्तान में तालिबान के समर्थन या विरोध की बहस बड़ा सियासी मुद्दा बन चुकी है। देशभक्ति और गद्दार की परिभाषाएं इस बहस के दौरान टेलीविजन चैनलों पर गढ़ी जा रही हैं।

यूएन ने भी यह साफ कर दिया है कि तालिबान पर प्रतिबंध जारी रहेगा लेकिन उसे आतंकवादी संगठन के रूप में आगे नहीं देखा जा सकता क्योंकि वह एक देश की राजनीतिक व्यवस्था का सक्रिय भागीदार है।
ऑस्ट्रेलिया ने खुलकर यूएन की इस सोच का समर्थन किया है। यह भी महत्वपूर्ण है कि भारत इस वक्त यूएन की सुरक्षा परिषद का अस्थायी अध्यक्ष है।