तालिबान की तारीफ करना देशद्रोह है, आतंकवाद या कट्टरवाद का समर्थन है? क्या ऐसा करने वालों को हिन्दुस्तान में रहने का अधिकार नहीं है? इसके उलट प्रश्न है कि तालिबान का विरोध किए बगैर क्या कोई देशभक्त नहीं हो सकता या फिर आतंकवाद या कट्टरवाद का विरोधी नहीं हो सकता या फिर लोकतंत्रवादी और प्रगतिशील नहीं हो सकता? दोनों प्रश्नों को मिलाकर देखें तो तालिबान पर हमारी समझ ही क्या हमें लायक या नालायक बनाएगी?