भारत की स्वतंत्रता से पहले और स्वतंत्र होने के बाद देश के नेताओं की यह कवायद थी कि उन लोगों को पठन-पाठन, शासन-प्रशासन में हिस्सेदारी दी जाए, जिन्हें सदियों से जातीय आधार पर तमाम सुख-सुविधाओं से ही नहीं बल्कि सामान्य मानवाधिकार से भी वंचित रखा गया था।