भारत की स्वतंत्रता से पहले और स्वतंत्र होने के बाद देश के नेताओं की यह कवायद थी कि उन लोगों को पठन-पाठन, शासन-प्रशासन में हिस्सेदारी दी जाए, जिन्हें सदियों से जातीय आधार पर तमाम सुख-सुविधाओं से ही नहीं बल्कि सामान्य मानवाधिकार से भी वंचित रखा गया था।
सवर्ण आरक्षण पर मुँह क्यों नहीं खोलती न्यायपालिका?
- विचार
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- प्रीति सिंह
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- 23 Apr, 2020

प्रीति सिंह
शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की है कि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण की इजाजत नहीं दी जा सकती। यह टिप्पणी अनुसूचित जनजातियों को 100 प्रतिशत आरक्षण देने के 20 साल पुराने फ़ैसले पर आई है।
संरक्षण देने की कवायद समाज से बहिष्कृत और अछूत माने जाने वाले अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग को विधायिका से लेकर सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने से शुरू हुई। बाद में उन लोगों की पहचान की गई, जो सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं और जिनकी शासन-प्रशासन में भागीदारी नहीं है, उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी में रखा गया।
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