भारत की स्वतंत्रता से पहले और स्वतंत्र होने के बाद देश के नेताओं की यह कवायद थी कि उन लोगों को पठन-पाठन, शासन-प्रशासन में हिस्सेदारी दी जाए, जिन्हें सदियों से जातीय आधार पर तमाम सुख-सुविधाओं से ही नहीं बल्कि सामान्य मानवाधिकार से भी वंचित रखा गया था।
संरक्षण देने की कवायद समाज से बहिष्कृत और अछूत माने जाने वाले अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग को विधायिका से लेकर सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने से शुरू हुई। बाद में उन लोगों की पहचान की गई, जो सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं और जिनकी शासन-प्रशासन में भागीदारी नहीं है, उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी में रखा गया।
'50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं'
देश जहां इस समय कोरोना वायरस से जूझ रहा है, इसी बीच उच्चतम न्यायालय ने टिप्पणी की है कि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण की इजाजत नहीं दी जा सकती। शीर्ष न्यायालय की पीठ ने यह टिप्पणी आंध्र प्रदेश सरकार के वर्ष 2000 के एक आदेश पर की। आंध्र सरकार ने 20 साल पहले अधिसूचित क्षेत्रों के स्कूलोंं की शिक्षक भर्ती में अनुसूचित जनजातियों को 100 प्रतिशत आरक्षण देने का फ़ैसला किया था।
भारत के संविधान निर्माता भीमराव आंबेडकर ने तमाम मौक़ों पर कहा है कि भारत में न्यायाधीशों का फ़ैसला उनके जातीय चरित्र के मुताबिक़ होता है।
सवर्ण आरक्षण पर चुप्पी
ऐसे में यह जान लेना ज़रूरी था कि आदिवासियों को आदिवासी बहुल इलाक़े में आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा 20 साल पहले दिए गए आरक्षण को किन लोगों ने पलटा है। न्यायाधीशों का एक वर्ग चरित्र है। संभवत: यही वजह है कि जब नरेंद्र मोदी सरकार ने सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की और वह 50 प्रतिशत आरक्षण के दायरे को पार कर गया तो भारत के किसी भी न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश ने उस पर एक दिन के लिए भी रोक नहीं लगाई।
रोक लगाना तो दूर की बात है, किसी न्यायाधीश ने सरकार से यह सवाल पूछना भी मुनासिब नहीं समझा कि सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने और ओबीसी को आरक्षण देने में एक समान क्रीमी लेयर की शर्त है तो दोनों में किस तरह का अंतर है और अलग से आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देने की जरूरत क्यों महसूस हुई।
सवाल 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण का नहीं, नीयत का है। तमिलनाडु सहित कई राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण है। संविधान ने विधायिका को अधिकार दिया है कि अगर कोई तबक़ा विकास की धारा से वंचित रह गया है तो उसे विशेष सुविधाएं देकर मुख्य धारा में लाया जाए।
बहरहाल, आरएसएस समर्थित भारतीय जनता पार्टी की सरकार काम पर है और सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी को देश की जनता का अपार समर्थन मिला हुआ है।
अपनी राय बतायें