लंबे संघर्षों के बाद आख़िरकार कामगारों के 8 घंटा काम के जिस अधिकार को 'अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन’ (आईएलओ) ने 1919 में मान्यता दी थी, ठीक एक सदी बाद क्या इस तरह अपनी आँखों के सामने उन्हें 'उड़नछू' हो जाते वह देखता रहेगा? भारतीय ट्रेड यूनियन परिसंघ के सूत्रों की मानें तो आईएलओ बहुत जल्द भारत को 'कारण बताओ नोटिस' जारी करने जा रहा है। अपने सख़्त एतराज़ में मज़दूर परिसंघ ने श्रमिकों के ‘अंतरराष्ट्रीय संगठन’ से इस मामले में कार्रवाई की माँग की है। ‘वे (आईएलओ) भारत पर प्रतिबन्ध भी लगा सकते हैं।’
श्रम क़ानूनों पर डकैती: रक्तरंजित तो नहीं आपके हाथ?
- विचार
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- 14 May, 2020

उन्नीसवीं सदी मज़दूरों के लहू से रंगी पड़ी है और इसी लहू की धार में डूबते-उतराते उसने हासिल किये हैं 8 घंटे की कामगारी के शानदार तमगे, अगली सदी में आईएलओ ने जिस पर पुख्तगी की अपनी मुहर चस्पां की थी। आज जब भारत की 6 रियासतों के बेपरवाह बादशाह उसी मुहर को खरोंच डालना चाहते हैं तो जेनेवा का हस्तक्षेप अवश्यम्भावी है। वह ज़रूर उलट कर पूछेगा- श्रीमान, कामगारों के आठ घंटे के अधिकार के रक्त में तो नहीं सने हैं आपके हाथ?
अभी तक इस मामले में भले ही 6 राज्य सरकारों ने अपनी 'स्मार्टनेस' दिखाई हो लेकिन परिसंघ यानी कन्फडरेशन को शुबहा है कि जल्द ही ये 'महामारी' अन्य राज्यों में भी फैलने वाली है। यही वजह है कि वे इस पर तुरंत रोकथाम चाहते हैं।