नज़ीर अहमद बेचैन हैं। उनके भीतर यह सवाल उमड़-घुमड़ रहा है कि प्रधानमंत्री के लॉकडाउन राहत कोष से दी जाने वाली भामाशाही रहमतें, औद्योगिक अस्पताल के बाहरी बरामदे के टूटे-फूटे बेड पर लेटे उनके फ़ुटवियर उद्योग के लिए 'वेंटिलेटर' का इंतज़ाम कर पाएँगी? नज़ीर अहमद देश के बड़े जूता निर्यातकों में एक हैं और पिछले 40 साल से फ़ुटवियर के अंतरराष्ट्रीय उद्योग में जूझ रहे हैं। उन्होंने ‘मंदी’ और ‘तेज़ी’ के अनेक मौसम देखे हैं लेकिन उनकी कमर इस बार जैसी कभी नहीं टूटी। यह पूछने पर कि वित्तमंत्री की राहत घोषणाओं में जूता उद्योग को क्या मिल रहा है, वह कहते हैं ‘उन्होंने मेज़ पर नक़्शा फैला दिया है। अब आप खज़ाना ढूंढ सकते हैं तो ढूँढिए!’ यह पूछने पर कि क्या उन्हें या उनके दोस्तों के हाथ खज़ाना लगा, झुंझला कर जवाब देते हैं ‘अभी तक तो नहीं।’
वित्तमंत्री के पास है जूते का सुलोचन?
- विचार
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- 17 May, 2020

आगरा शहर से बाहर, ग्वालियर रोड पर अपनी माइक्रो यूनिट चलाने वाले युवा कमलदीप कहते हैं “हम तीन महीने से तहस नहस हुए पड़े हैं। हम तो प्रधानमंत्री से राहत की उम्मीद लगाए बैठे थे और वित्तमंत्री 'लोन' की बात करती हैं। 'लोन' भी उन्हीं को मिलेगा जो एमएसएमई में 3 साल पहले से रजिस्टर्ड हैं। हमें तो मिलने से रहा। 'लोन' भी 5 फ़ीसदी को ही मिल सकेगा।”
नज़ीर अहमद का जो हाल है, चेन्नई, कानपुर, कोलकाता और आगरा में जूता उद्योग से जुड़े दूसरे सभी छोटे-बड़े उद्योगपतियों का भी यही हाल है। देश का समूचा घरेलू और निर्यातित जूता उद्योग मुख्यतः इन्हीं 4 शहरों में केंद्रित है। यूँ तो कोविड-19 ने देश के सभी उद्योग धंधों पर ग़ाज़ गिराई है लेकिन फ़ुटवियर उद्योग को इसने सिरे से ठिकाने लगा दिया है।