नज़ीर अहमद बेचैन हैं। उनके भीतर यह सवाल उमड़-घुमड़ रहा है कि प्रधानमंत्री के लॉकडाउन राहत कोष से दी जाने वाली भामाशाही रहमतें, औद्योगिक अस्पताल के बाहरी बरामदे के टूटे-फूटे बेड पर लेटे उनके फ़ुटवियर उद्योग के लिए 'वेंटिलेटर' का इंतज़ाम कर पाएँगी? नज़ीर अहमद देश के बड़े जूता निर्यातकों में एक हैं और पिछले 40 साल से फ़ुटवियर के अंतरराष्ट्रीय उद्योग में जूझ रहे हैं। उन्होंने ‘मंदी’ और ‘तेज़ी’ के अनेक मौसम देखे हैं लेकिन उनकी कमर इस बार जैसी कभी नहीं टूटी। यह पूछने पर कि वित्तमंत्री की राहत घोषणाओं में जूता उद्योग को क्या मिल रहा है, वह कहते हैं ‘उन्होंने मेज़ पर नक़्शा फैला दिया है। अब आप खज़ाना ढूंढ सकते हैं तो ढूँढिए!’ यह पूछने पर कि क्या उन्हें या उनके दोस्तों के हाथ खज़ाना लगा, झुंझला कर जवाब देते हैं ‘अभी तक तो नहीं।’