आज जबकि कोरोना अपने उत्ताप पर है, मुझे अपना जन्मदिन (22 मई) बेहद कचोट रहा है। कचोटे जाने की वजह है स्मृतियों में जन्म के छठे दिन मेरे 'महामारी' की चपेट में आ जाने की हौलनाक कथा जो माँ (अपने जीवन पर्यन्त) मेरे हर जन्मदिन पर सुनाती थीं। बाद के दिनों में, जबकि हमारे बेटों का कैशोर्य शुरू हो गया था (और दादी से दुलार की नूराकुश्ती उनका शगल बन चुका था) वह ज्यों ही अपना स्टीरियो टाइप शुरू करतीं, उनके नाती अंत तक का पूरा स्टोरी रिकॉर्ड बजा डालते थे।