बीते शुक्रवार को आगरा में 89 जमातियों को कोर्ट ने निजी मुचलकों पर रिहा कर दिया। जिस यूपी में तब्लीग़ियों को क्वॉरंटीन सेंटरों में 59 दिन तक रखे जाने का दर्दनाक इतिहास रहा हो, वहाँ अब उनकी रिहाई का ‘लास्ट राउंड’ चल रहा है।
तब्लीग़ी जमातियों के बाद अगला शिकार कौन?
- विचार
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- 24 May, 2020

ढेर सारे 'राष्ट्र विरोधी' आरोपों के बावजूद अदालतों ने तब्लीग़ी जमातियों को एक झटके में ही निजी मुचलकों पर रिहा कर दिया। अभी मेरठ और शाहजहाँपुर जैसे गिने-चुने ज़िलों में सिर्फ़ ऐसे विदेशी तब्लीग़ियों को नहीं रिहा किया गया है जिनकी वीज़ा अवधि चुक गयी है। बहरहाल जमात एपिसोड तो 'दी एन्ड' पर पहुँच चुका है लेकिन सुरसा की रफ़्तार से बढ़ते कोरोना के नये ज़िम्मेदारों को ढूँढने के लिए फिर से काँटा फेंका जा रहा है।
अब तक के इतिहास में सरकार की निगाह में 'उम्दा', 'मददगार' और 'साफ़-सुथरा' ट्रैक के लिए जो जमाती जाने जाते थे, कोरोना काल में उन्हीं की 'खलनायकी' के चर्चे दूर-दूर तक फैले। यूपी की यदि बात करें, यहाँ की सरहदों के भीतर ऐसी 'गर्म हवा' चली, लगा पूरा प्रदेश तब्लीग़ियों के छोड़े कोरोना के ज़हर से भस्म हो जायेगा। मुख्यमंत्री से लेकर प्रदेश और ज़िलों के प्रशासनिक अधिकारियों तक का पूरा लाव लश्कर, सब का एक ही नारा था- कोविड-19 वायरस के फैलाव के लिए अकेले ज़िम्मेदार जमाती हैं। समूचे अप्रैल माह में 'कोरोना बम', 'कोरोना आतंक', 'देश द्रोही', राष्ट्र विरोधी'- समाज के सबसे ख़तरनाक शत्रु आदि के तौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला ऐसा कोई फ़िक़रा नहीं था जिससे इन तब्लीग़ियों को नहीं नवाज़ा गया। 1 मई तक यूपी के 20 ज़िलों में लगभग 3 हज़ार जमातियों को गिरफ्तार कर लिया गया। उनके ख़िलाफ़ 'आईपीसी' की महामारी संबंधी और 'महामारी एक्ट' की अनेक कठोर धाराओं में चालान किया गया था। ज़्यादातर को कोर्ट ने या तो बॉन्ड भरवाकर छोड़ दिया, या फिर ज़मानत पर रिहा कर दिया।