उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की है कि उन्हीं राज्यों में श्रमिकों को काम करने के लिए वापस भेजा जाएगा जो मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा की गारंटी देंगे। क्या वह सच में मज़दूरों के लिए चिंतित हैं?
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने देश के छह राज्यों को श्रम क़ानूनों को निलंबित किए जाने पर हिदायत दी है। इसने कहा है कि श्रम क़ानून में जो भी बदलाव हो वो आपसी सहमति से और अंतरराष्ट्रीय श्रम के मानकों के आधार पर ही हो।
लंबे संघर्षों के बाद आख़िरकार कामगारों के 8 घंटा काम के जिस अधिकार को 'अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन’ (आईएलओ) ने 1919 में मान्यता दी थी, ठीक एक सदी बाद क्या इस तरह अपनी आँखों के सामने उन्हें 'उड़नछू' हो जाते वह देखता रहेगा?
कोरोना संकट के बीच आर्थिक संकट का सामना कर रही कई राज्यों की सरकारों ने धड़ाधड़ श्रम क़ानूनों में बदलाव कर दिया है। आख़िर श्रमिकों के अनुकूल माने जाने वाले इन क़ानूनों को क्यों हटाया जा रहा है?