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तेल आयात: ईरान-सऊदी अरब पर भारत तमाशबीन क्यों बना हुआ है?

भारत ने सऊदी अरब पर हुए ड्रोन हमले को आतंकवादी वारदात कहा है। ज़ाहिर है कि मुसलिम देशों के इस झगड़े में भारत किसी का भी पक्षधर नहीं बन सकता, क्योंकि दोनों देशों से वह तेल आयात करता है और दोनों से उसके संबंध मधुर हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि वह फुटपाथ पर खड़ा तमाशबीन बना हुआ है।
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

सऊदी अरब पर यमन के बाग़ियों ने जो हमला किया है, उससे सारी दुनिया में ख़तरे की घंटियाँ बजने लगी हैं क्योंकि दुनिया के देशों को सबसे ज़्यादा तेल देनेवाला देश यही है। इसके अबक़ैक और ख़ुरैश स्थित तेल संयंत्रों पर ड्रोन विमानों से हमला हुआ है। सिर्फ़ एक-दो दिन में ही तेल की क़ीमतें 20-25 प्रतिशत बढ़ गई हैं। भारत अपने कुल तेल आयात का 18 प्रतिशत सऊदी अरब से ख़रीदता है। कोई आश्चर्य नहीं कि भारत में पेट्रोल और डीज़ल के दाम 5 से 10 रुपये प्रति लीटर बढ़ जाएँ। अगर ऐसा हो गया तो पता नहीं हमारी अर्थव्यवस्था का क्या होगा? महँगाई बढ़ेगी।

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यदि सरकार तेल के दाम नहीं बढ़ाएगी तो उसका घाटा बढ़ेगा। बस, संतोष इसी बात का है कि सऊदी अरब और अमेरिका, दोनों ने भरोसा दिलाया है कि भारत को जो 2.50 करोड़ टन तेल हर वर्ष चाहिए, उसमें कोई कमी नहीं आने दी जाएगी। माना कि कमी नहीं होगी लेकिन तेल की बढ़ी हुई क़ीमतों के धक्के को हमारी अर्थव्यवस्था कैसे बर्दाश्त करेगी।

अभी मामला सिर्फ़ एकतरफ़ा हमले का ही है, कुछ पता नहीं कि अमेरिका और सउदी अरब क्या कर डालें। वे इस हमले का पूरा दोष ईरान पर मढ़ रहे हैं। उनके आसमानी फ़ोटो उन्हें बता रहे हैं कि यह हमला यमन से नहीं, ईरान की दिशा से हुआ है। यह हमला हूती ड्रोन से नहीं, ईरानी मिसाइलों से हुआ है। यमन के हूती बाग़ियों को ईरान का समर्थन खुले-आम मिलता है लेकिन इस हमले की ज़िम्मेदारी ईरान ने बिल्कुल भी नहीं ली है। फिर भी यह असंभव नहीं कि डोनाल्ड ट्रंप ईरान पर हमला बोल दें या सउदी अरब को उस पर हमले के लिए उकसा दें।

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परमाणु-सौदे को लेकर अमेरिका और ईरान में पहले से ही तलवारें खिंची हुई हैं। ईरान ने अमेरिका को धमकी दे रखी है। उसने कह दिया है कि ईरान से 2000 किमी तक के किसी भी अमेरिकी सैनिक ठिकाने को उड़ाने की पूरी क्षमता ईरानी फ़ौजों में है। रूस और चीन ने अमेरिका से सावधानी बरतने का अनुरोध किया है और भारत ने सऊदी अरब पर हुए हवाई आक्रमण को आतंकवादी वारदात कहा है।

ज़ाहिर है कि मुसलिम देशों के इस झगड़े में भारत किसी का भी पक्षधर नहीं बन सकता, क्योंकि दोनों देशों से वह तेल आयात करता है और दोनों से उसके संबंध मधुर हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि वह फुटपाथ पर खड़ा तमाशबीन बना हुआ है। वह अपने त्रिपक्षीय संबंधों के दम पर शांति वार्ता क्यों नहीं चलाता? उसकी बात अमेरिका, सउदी अरब और ईरान- तीनों सुनेंगे। इनके बीच यदि युद्ध छिड़ गया तो उसकी लपटें भारत को भी झुलसाए बिना नहीं रहेंगी!
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