इन नेताओं का कहना है कि अमित शाह हिंदी को सब पर थोपने के लिए अन्य भारतीय भाषाओं का गला घोंटना चाहते हैं। यह सरासर झूठ है। क्या अमित शाह हिंदी भाषी हैं? नहीं हैं। वह ओवैसी, कुमारस्वामी, नारायण स्वामी, वाइको और ममता बनर्जी की तरह ग़ैर-हिंदीभाषी हैं। उनकी मातृभाषा हिंदी नहीं, गुजराती है। इसलिए जो आरोप सेठ गोविंददास, डाॅ. लोहिया और मुझ पर पचास-साठ साल पहले लगाए जाते थे, वे अमित शाह पर नहीं लगाए जा सकते।
दूसरी बात, अमित शाह ने अपने भाषण में कई बार भारतीय भाषाओं के महत्व को दोहराया है। उनके भाषण में से एक शब्द भी ऐसा नहीं खोजा जा सकता, जिसके आधार पर यह सिद्ध किया जा सकता हो कि वह किसी भी भारतीय भाषा को हिंदी के आगे उपेक्षित या अपमानित करना चाहते हों।
तीसरी बात, उन्होंने अंग्रेजी की ग़ुलामी पर प्रहार किया है, जो बिल्कुल ठीक किया है। यदि हमारे राज-काज, अदालतों, पाठशालाओं-अस्पतालों, संसद-विधानसभाओं और रोजमर्रा के जीवन से अंग्रेजी का वर्चस्व ख़त्म होगा तो क्या होगा? सारा देश आपस में जुड़ेगा। अभी सिर्फ़ अंग्रेजीदां भद्रलोक, जिसकी संख्या 5-7 करोड़ से ज़्यादा नहीं है, आपस में जुड़ा हुआ है। क्या यह सच्चा और पूरा जुड़ाव है? 130 करोड़ लोगों को आपस में कौनसी भाषा जोड़ सकती है? वह सिर्फ़ एक ही भाषा हो सकती है और वह है - हिंदी। इसमें अमित शाह ने क्या गलत कह दिया?
हिंदी की वह भूमिका क़तई नहीं होगी जो अंग्रेजी की है। यदि हिंदी भी अंग्रेजी की तरह शोषण और ठगी की भूमिका निभाएगी तो उसका सबसे बड़ा विरोधी मैं होऊंगा। उसमें अमित शाह जैसे लोग भी मेरे साथ होंगे।
(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)
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