loader
रुझान / नतीजे चुनाव 2024

झारखंड 81 / 81

इंडिया गठबंधन
56
एनडीए
24
अन्य
1

महाराष्ट्र 288 / 288

महायुति
233
एमवीए
49
अन्य
6

चुनाव में दिग्गज

बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार

आगे

हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट

आगे

मोहन भागवत की ‘शर्तें’ संविधान को चुनौती हैं

आख़िरकार आज़ादी के अमृत महोत्सव वर्ष में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की ओर से वह विचार सामने आ ही गया जो स्वतंत्रता संघर्ष और उससे उपजे मूल्यों पर आधारित संविधान को नकारने की उसकी सतत मंशा को उजागर कर देता है।

आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य में छपे सरसंघ चालक मोहन भागवत के साक्षात्कार में जिस तरह भारतीय होने के लिए ‘शर्तें’ निर्धारित की गयी हैं, वे डॉ.आंबेडकर के उस सपने पर कुठाराघात हैं जिसके तहत संविधान ने देश के हर नागरिक को बिना किसी भेदभाव के समान माना है। भारत में कोई समुदाय किसी दूसरे समुदाय की कृपा से नहीं बल्कि संविधान से प्राप्त अधिकारों और संरक्षण के दम पर रहता है। 

यह साक्षात्कार ऐसे वक़्त आया है जब राहुल गाँधी के नेतृत्व मे जारी कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की चर्चा देश भर में है। राहुल गाँधी ‘नफ़रत के बाज़ार में मुहब्बत की दुकान खोलने’ का आह्वान कर रहे हैं। यह यात्रा अपनी प्रकृति में चाहे जितनी अराजनीतिक हो, लेकिन इसे मिल रहा समर्थन और संदेश उस राजनीति को गहरे चिंता में डाल रही है जिसने भारत को ‘नफ़रत के बाज़ार’ में तब्दील करके अभूतपूर्व मुनाफ़ा कमाया है और जिसके हाथ में मौजूदा दौर में सत्ता के सभी सूत्र पहुँच चुके हैं।

ताज़ा ख़बरें
बहरहाल, आरएसएस को किसी उच्च धरातल पर देखने की इच्छा से भरे बुद्धिजीवी यदि इस साक्षात्कार को भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गाँधी की ओर से आरएसएस पर हो रहे निरंतर हमले का जवाब न मानना चाहें तो भी उन्हें इसके निहितार्थ को समझने में ग़लती नहीं करनी चाहिए। ये साक्षात्कार ख़ुद एक प्रमाण है कि सत्ता के समर्थन से आरएसएस एक ‘लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष भारत’ के विचार को तोड़ने के अपने प्रोजेक्ट को नई धार देना चाहता है, जो भारत जोड़ो जैसी यात्रा के अतिरिक्त महत्व को रेखांकित करता है।
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने 1200 साल की ग़ुलामी की बात की थी जिसे मोहन भागवत के साक्षात्कार में हज़ार साल कर दिया गया है। ये दो सौ साल की कमी अचानक कैसे आ गयी, इसे तो वही स्पष्ट करेंगे, लेकिन इतना तो साफ़ है कि उनके निशाने पर देश के मुसलमान हैं जिन्हें वे ‘सुधारना’ या अपनी शर्तों के मुताबिक ढालना चाहते हैं।

वे हिंदू संगठनों की तमाम आक्रामकता को सही ठहराने के लिए हज़ार साल से जारी युद्ध की दलील देते हुए इसे स्वाभाविक बताते हैं और सलाह देते हैं कि मुसलमानों को श्रेष्ठता बोध से निकलना चाहिए कि कभी उन्होंने इस देश पर शासन किया था।

पहली बात तो यह है कि मोहन भागवत किस हैसियत से किसी समुदाय के लिए शर्तें निर्धारित कर रहे हैं? भारत में किसी धर्म, पंथ, देवी-देवता को मानने या न मानने की पूरी छूट है लेकिन संविधान को न मानने की किसी को छूट नहीं है। और संविधान सभी को अपने धर्म को मानने और उसको प्रचारित करने की अज़ादी देता है। तो क्या भागवत की शर्तें संविधान को चुनौती नहीं है जिसकी शपथ लेकर नरेंद्र मोदी दिल्ली में और बीजेपी के मुख्यमंत्री कई राज्यों में सरकार चला रहे हैं?

RSS chief Mohan bhagwat on muslim supremacy - Satya Hindi

आरएसएस चीफ़ मोहन भागवत जब मुसलमानों के लिए ‘यहाँ रहना चाहे तो रहें, चाहे अपने पुरखों के धर्म में लौट आयें’ जैसी उदारता दिखाते हैं तो एक संविधानेतर हैसियत हासिल कर चुके शख़्स के अहंकार से भरे दिखते हैं। यह निश्चित ही 2014 के बाद केंद्र में चल रही नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही सरकार की ओर से संवैधानिक संस्थाओं को बेमानी बना दिये जाने की हद तक चले जाने के प्रयासों का नतीजा है। यह बात छिपी नहीं है कि आज़ादी के आंदोलन से विरत रहने वाले आरएसएस ने तिरंगे से लेकर संविधान तक का खुला विरोध किया था।

मोहन भागवत लगातार विदेशी प्रभाव और विदेशी षड़यंत्र की बात करते हैं लेकिन सावरकर से लेकर गोलवलकर तक प्रवाहित आरएसएस की चिंतन परंपरा जब भागवत मुसलमानों को 'अन्य’ के रूप में चिन्हित करने की जो कोशिश करते हैं, वह स्वयं में विदेशी परंपरा है। यह परंपरा किस क़दर हिटलर से प्रभावित रही है, ये गोलवलकर के लेखन से स्पष्ट है।

RSS chief Mohan bhagwat on muslim supremacy - Satya Hindi
जबकि भारतीय आध्यात्मिक परंपरा किसी को अन्य नहीं मानती। उपनिषदों की भाषा में कहें तो अगर जीव और ब्रह्म में भेद नहीं है, सारा ब्रह्माँड ही एकत्व का प्रतीक है तो हिंदू और मुसलमानों में भेद का क्या आधार है?  क्या भागवत स्वामी विवेकानंद से बड़े हिंदू हैं जो ‘इस्लामी शरीर में वेदांती मस्तिष्क’ को भारत का भविष्य मानते थे?
मोहन भागवत जिस तरह के ‘हिंदू’ को भारतीयता का पर्याय मानते हैं उससे मुसलमान ही नहीं, जैन, बौद्ध, आर्य समाजी भी अभारतीय हो जायेंगे जो ईश्वर और मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करते, कम्युनिस्टों की बात तो जाने ही दीजिए। इस विचार का प्रबल होना भारत की एकता के लिए भी ख़तरा है, क्योंकि विंध्याचल पार करते ही पेरियार एक बड़ी शख्सियत के रूप में नज़र आते हैं जो न सिर्फ़ ईश्वर का निषेध करते हैं बल्कि अवतारवाद का भी खुलकर खंडन करते हैं। और डॉ.आंबेडकर तो अखिल भारतीय व्यक्तित्व हैं जो अपनी 22 प्रतिज्ञाओं की शुरुआत ही उन देवी-देवताओं को तिलांजलि देने से करते है जो आक्रामक हिंदू को आहत होने की तमाम वजह दे सकता है।
विचार से और खबरें

भारत सिर्फ़ हज़ार साल पुराना नहीं है। वर्ग और जाति शोषण के विरुद्ध विद्रोह और संघर्ष की परंपरा इससे भी पुरानी है। अगर बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जाएगी। इसीलिए कहा जाता है कि सभ्यता के विकास मे स्मृति के अलावा विस्मृति का महत्व भी होता है। 1947 में आज़ादी पाने के साथ जो भारत सामने आया, वह अनोखा और अभूतपूर्व था। हज़ार साल पूर्व के समाज में स्त्रियों, शूद्रों, आदिवासियों और श्रमिकों के पास वे अधिकार नहीं थे जो संविधान बनने के साथ इन वंचित समुदायों को प्राप्त हुए। आरएसएस हज़ारों साल पहले के जिस गौरवशाली समय की बात करता है, वह इन वर्गों के लिए ग़ुलामी का युग था जिसकी वापसी कोई नहीं चाहेगा।

और सबसे बड़ी अफ़सोस की बात तो ये है कि मोहन भागवत का अंदाज़ मो.अली जिन्ना की भविष्यवाणी सही साबित करता है जिन्होंने संसदीय लोकतंत्र की आड़ में अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यकों के शासन की आशंका जताई थी। तत्कालीन भारतीय नेतृत्व ही नहीं, भारतीय मुसलमानों ने इस आशंका को ख़ारिज करते हुए पाकिस्तान के विचार को ठुकरा दिया था। भारत नाम के विचार से प्यार करने वालों के सामने ये चुनौती एक बार फिर मुँह बाये खड़ी है।

(लेखक कांग्रेस से जुड़े है)

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
पंकज श्रीवास्तव
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें