आख़िरकार आज़ादी के अमृत महोत्सव वर्ष में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की ओर से वह विचार सामने आ ही गया जो स्वतंत्रता संघर्ष और उससे उपजे मूल्यों पर आधारित संविधान को नकारने की उसकी सतत मंशा को उजागर कर देता है।