आख़िरकार आज़ादी के अमृत महोत्सव वर्ष में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की ओर से वह विचार सामने आ ही गया जो स्वतंत्रता संघर्ष और उससे उपजे मूल्यों पर आधारित संविधान को नकारने की उसकी सतत मंशा को उजागर कर देता है।
मोहन भागवत की ‘शर्तें’ संविधान को चुनौती हैं
- विचार
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- 31 Feb, 2023

संघ प्रमुख मोहन भागवत के हिंदू समाज के द्वारा हज़ार साल से युद्ध का सामना करने की बात कहना और मुसलमानों को यह सलाह देना कि वे श्रेष्ठता के बोध से बाहर निकलें, इस बयान का क्या मतलब है?
आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य में छपे सरसंघ चालक मोहन भागवत के साक्षात्कार में जिस तरह भारतीय होने के लिए ‘शर्तें’ निर्धारित की गयी हैं, वे डॉ.आंबेडकर के उस सपने पर कुठाराघात हैं जिसके तहत संविधान ने देश के हर नागरिक को बिना किसी भेदभाव के समान माना है। भारत में कोई समुदाय किसी दूसरे समुदाय की कृपा से नहीं बल्कि संविधान से प्राप्त अधिकारों और संरक्षण के दम पर रहता है।
यह साक्षात्कार ऐसे वक़्त आया है जब राहुल गाँधी के नेतृत्व मे जारी कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की चर्चा देश भर में है। राहुल गाँधी ‘नफ़रत के बाज़ार में मुहब्बत की दुकान खोलने’ का आह्वान कर रहे हैं। यह यात्रा अपनी प्रकृति में चाहे जितनी अराजनीतिक हो, लेकिन इसे मिल रहा समर्थन और संदेश उस राजनीति को गहरे चिंता में डाल रही है जिसने भारत को ‘नफ़रत के बाज़ार’ में तब्दील करके अभूतपूर्व मुनाफ़ा कमाया है और जिसके हाथ में मौजूदा दौर में सत्ता के सभी सूत्र पहुँच चुके हैं।