राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रशिक्षण कार्यक्रम की समाप्ति पर अपने उद्बोधन में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हाल में सम्पन्न लोकसभा चुनावों को लेकर जो कुछ कहा उससे असहमति मुश्किल है। अच्छी-अच्छी बातें हैं, संभवत: अच्छी मंशा से भी कही गई हैं लेकिन समय और अवसर गलत चुने जाने से उनका प्रभाव शून्य ही दिखाई दे रहा है।
बीजेपी से ज़्यादा आरएसएस में ही बदलाव की ज़रूरत?
- विचार
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- 13 Jun, 2024

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के दो दिन पहले आए बयान के मायने क्या हैं? क्या बीजेपी में ही सुधार की ज़रूरत है? क्या संघ का कोई कसूर नहीं है?
टोकने-रोकने का काम समय पर होना चाहिए, ग़लती होने के बाद नहीं। मोदी विरोधी लोग (पक्ष और प्रतिपक्ष के) इन बातों से प्रसन्न हैं तो नरेंद्र मोदी शुरुआती खटकों के बाद अपने पुराने रंग में लौट गए हैं। चार सौ पार के नारे के बाद 63 सीटें गँवाकर भी उनकी भाजपा न सही एनडीए सरकार बन गई है, सब कुछ पूर्ववत हो चुका है और उनके कटाक्षपूर्ण और हवाई बातों का दौर शुरू हो गया है। पिछली सरकार के 71 में से 33 लोग ही जनता और उनका भरोसा पाकर मंत्री बने हैं लेकिन वे कब से सभी मंत्रियों से सौ दिन का एजेंडा बनाने की बात करते रहे हैं जिससे विकास की गति बढ़ाई जाए और भारत जल्दी से दुनिया की एक शक्ति बन जाए। नए मंत्रियों को उनके विभाग का पता पहली कैबिनेट की बैठक में ही चला लेकिन विजन दस्तावेज की मांग पहले से शुरू हो गई थी। एनडीए के सहयोगी दल भी उनके आभामंडल के आगे नतमस्तक लगते हैं।