लंबे और थकाऊ चुनाव के बाद आए नतीजे हर बार की तरह कुछ नए हीरो लेकर आए हैं तो कई पुराने महारथियों की राजनैतिक विदाई का संदेश भी। ठीक इसी तरह मतदाताओं ने शासन और राजनीति के लिए भी कुछ एकदम नए संदेश दिए हैं तो कुछ पुराने ढंग-ढर्रे पर अपने अपने ढंग से निर्णय भी सुनाया है। और जाहिर तौर पर राजनेता दिन रात जनता के बीच रहकर भी इन संदेशों को ठीक से नहीं समझते या इनकी उपेक्षा करते हैं तभी हर बार लगभग आधा सदन बदल जाता है, सरकार का स्वरूप बदल जाता है और कई बार तो सरकार बदल जाती है। संयोग है कि इस बार सरकार सीधे सीधे नहीं बदली है, सरकार के मुखिया भी नहीं बदले हैं लेकिन जनादेश का सबसे ज्यादा प्रभाव उनके इकबाल पर ही दिखता है। सहमे सहमे से सरकार नजर आते हैं। और उनके कामकाज के आधार पर जनता ने उनको फेल भले न किया हो लेकिन उनको अपने रंग-ढंग बदलने का जनादेश तो दिया ही है। ऐसा संदेश या आदेश सिर्फ उनके लिए ही नहीं है। पक्ष विपक्ष के लगभग सभी नेताओं के लिए है, बहन मायावती, नवीन पटनायक, चौटाला परिवार और महबूबा मुफ्ती के लिए तो कुछ ज्यादा ही सख्त जनादेश आया है।