राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में आजकल बड़ी चर्चा है कि क्या डॉ. मोहन भागवत को सबसे साहसिक सरसंघचालक माना जाना चाहिए? क्या भागवत संघ के चेहरे और चरित्र को पूरी तरह बदलने की कोशिश में हैं? क्या भागवत वाक़ई हिन्दू-मुसलिम एकता के इस हद तक समर्थक हैं कि वह इस मसले पर संघ के भीतर कुछ हिस्सों में उठती विरोध की आवाज़ों का सामना करने के लिए भी तैयार हैं? या फिर वह इस विषय को आज के हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी ज़रूरत समझते हैं।