सितम्बर 2014 में अमेरिका के मैडिसन स्क्वायर के खचाखच भरे हुए ऑडिटोरियम में गूंजता मोदी-मोदी का शोर थमने का नाम नहीं ले रहा। राष्ट्रीय स्तर पर यह नारा साल 2013 में शुरू हुआ था, जब बीजेपी ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी को अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था। फिर तो बीजेपी या मोदी के हर कार्यक्रम, जनसभा, रैली हर जगह मोदी नाम के नारे सुनाई देने लगे। वो गूंज दिल्ली में सुनाई देने लगी थी, लेकिन किसी ब्रांड का लगातार सफल होना आसान नहीं होता और इससे भी ज़्यादा उस ब्रांड पर भरोसा करना।
क्या कारण है कि मोदी अपना चुनाव कभी नहीं हारते?
- विचार
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- 17 Sep, 2021

अगले आम चुनावों में अभी वक़्त है और उससे पहले बीजेपी को अगले दो साल में 16 विधानसभा चुनावों का सामना करना है जिनमें आमतौर पर मोदी ही ब्रांड इमेज यानी चेहरा होंगे। इनमें से कितने चुनाव बीजेपी जीतती है, वो उसके लिए आम चुनावों के सफ़र को तय करेंगे।
बीजेपी के पास फ़िलहाल सिर्फ़ एक ब्रांड है- मोदी, या यूँ कहिए कि हर मर्ज की दवा। गुजरात में जब पार्टी बिलकुल नए चेहरे को रातों-रात मुख्यमंत्री बना देती है और फिर वो पहली बार के विधायक से सीएम बने भूपेन्द्र पटेल अपनी सरकार में सारे नए चेहरे शामिल कर लेते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि भूपेन्द्र पटेल पर चुनाव जिताने की उम्मीदवारी सौंप दी गई है। इसका सिर्फ़ एक राजनीतिक संदेश है कि चुनाव तो मोदी के चेहरे पर ही जीता जाएगा।