सितम्बर 2014 में अमेरिका के मैडिसन स्क्वायर के खचाखच भरे हुए ऑडिटोरियम में गूंजता मोदी-मोदी का शोर थमने का नाम नहीं ले रहा। राष्ट्रीय स्तर पर यह नारा साल 2013 में शुरू हुआ था, जब बीजेपी ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी को अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था। फिर तो बीजेपी या मोदी के हर कार्यक्रम, जनसभा, रैली हर जगह मोदी नाम के नारे सुनाई देने लगे। वो गूंज दिल्ली में सुनाई देने लगी थी, लेकिन किसी ब्रांड का लगातार सफल होना आसान नहीं होता और इससे भी ज़्यादा उस ब्रांड पर भरोसा करना।
बीजेपी के पास फ़िलहाल सिर्फ़ एक ब्रांड है- मोदी, या यूँ कहिए कि हर मर्ज की दवा। गुजरात में जब पार्टी बिलकुल नए चेहरे को रातों-रात मुख्यमंत्री बना देती है और फिर वो पहली बार के विधायक से सीएम बने भूपेन्द्र पटेल अपनी सरकार में सारे नए चेहरे शामिल कर लेते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि भूपेन्द्र पटेल पर चुनाव जिताने की उम्मीदवारी सौंप दी गई है। इसका सिर्फ़ एक राजनीतिक संदेश है कि चुनाव तो मोदी के चेहरे पर ही जीता जाएगा।
प्रधानमंत्री मोदी 17 सितम्बर को अपना 71वां जन्मदिन मना रहे हैं। इसके साथ ही सत्ता में रहने यानी सार्वजनिक जीवन के 20 साल भी वो पूरा कर रहे हैं। सात अक्टूबर 2001 को जब दिल्ली से गांधीनगर पहुँचकर मोदी ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तब वह विधायक भी नहीं बने थे। उससे पहले उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा था और 2014 में जिस दिन वो प्रधानमंत्री बने, तब पहली बार लोकसभा के सदस्य चुने गए थे। लेकिन इन बीस साल में मोदी ने कोई चुनाव नहीं हारा, साथ ही बीजेपी उन्हें चुनावों में अपना सबसे विश्वस्त और सबसे बड़ा ब्रांड मानती है चाहे फिर वो लोकसभा का चुनाव हो या राज्यों में विधानसभा के चुनाव।
मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने साल 2014 और 2019 दोनों लोकसभा चुनाव जीते और न केवल पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई बल्कि पहली बार जहाँ बीजेपी को 282 सीटें मिली थीं तो दूसरी बार 303 सीटों का बहुमत हासिल हुआ। विधानसभा चुनावों में कई बार बीजेपी को हार का सामना भी करना पड़ा, इसके बाद भी पार्टी ने किसी मुख्यमंत्री के चेहरे पर मैदान में उतरने के बजाय मोदी ब्रांड पर ज़्यादा भरोसा किया।
एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि बीजेपी को मोदी का चेहरा भुनाने के लिए बस कोई बहाना चाहिए, चाहे वो मोदी के सार्वजनिक जीवन में बीस साल पूरा करने का मौक़ा हो, या उनका जन्मदिन या फिर वैक्सीन अभियान में 75 करोड़ वैक्सीन लगने का मौक़ा। सर्जिकल स्ट्राइक हो या संसद में किसी क़ानून के पास होने का मौक़ा हो और फिर राम मंदिर निर्माण की शुरुआत हो या उज्जवला अभियान में आठ करोड़ लाभार्थी का आँकड़ा या जनधन योजना यानी हर चीज़ के लिए बस एक ही नाम– मोदी।
साल 1957 के आम चुनावों में कांग्रेस ने नारा दिया – नेहरू को वोट दो या कांग्रेस को वोट दो, एक ही बात है। फिर सत्तर के दशक में कांग्रेस ने कहा- ‘इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा’ और अब मोदी और बीजेपी एकमेव हो गए हैं।
बहुत से लोग इसे भले ही लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं मानते हों और बीजेपी की सार्वजनिक नेतृत्व की विचारधारा से भटकने का रास्ता भी, लेकिन अभी मोदी के नाम के बिना बीजेपी का काम नहीं चलता।
गुजरात से पहले उत्तराखंड और कर्नाटक में भी रातों-रात मुख्यमंत्री बदल दिए गए। बस नहीं बदल पाया तो यूपी में योगी का राज। उसमें कहा जाता है कि आरएसएस का दबाव बना रहा कि योगी ही उत्तर प्रदेश में सरकार चलाएंगे। इससे पहले पिछली बार के चुनावों में बीजेपी ने महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में भी नए चेहरों को मुख्यमंत्री बना कर चौंकाया था, वो प्रयोग भी मोदी के नेतृत्व में किया गया।
हाल में केन्द्र सरकार में 12 मंत्रियों को बदल दिया गया, जिनमें कई वरिष्ठ नाम थे। लेकिन विरोध का स्वर कहीं सुनाई नहीं दिया। कहा जाता है कि दरअसल अब मोदी-अमित शाह की बीजेपी में विरोध की जगह नहीं है, सिर्फ़ आदेश मानना है।
कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बाद अब तक 75 करोड़ से ज़्यादा लोगों को वैक्सीन की डोज लगने से बीजेपी को इस बात का भरोसा बढ़ गया है कि प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन पर सेवा और समर्पण समारोह से पार्टी के चुनावी अभियान को ताक़त मिलेगी।
अगले छह महीनों में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं, उसमें उत्तर प्रदेश पार्टी के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। अस्सी लोकसभा सीटों से ही मौटे तौर पर तय होता है कि दिल्ली में सरकार कौन बनाएगा।
तंज में भले ही टीएमसी के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा है कि मार्गदर्शक मंडल में जाने के लिए चार साल बचे हैं। मोदी स्वस्थ रहें। बीजेपी में 75 साल से अधिक आयु के नेता आमतौर पर पार्टी से रिटायर माने जाते हैं, जवाब में बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि डेरेक अपनी पार्टी के घर को तो संभालें, जहाँ सिर्फ एक ही नेता हैं ममता वहाँ तो कोई दूसरा है ही नहीं। बीजेपी में तो अब भी बड़े नेताओं की बात सुनी जाती है और प्रधानमंत्री मोदी सबसे राय मशविरा करते हैं।
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