यह वह दौर था जब देश में न कांग्रेस की सरकार थी, न बीजेपी की। इसलिए कश्मीरी पंडितों के निष्कासन के लिए इन दोनों में से किसी भी दल को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। दोषी अगर ठहराया जा सकता है तो तत्कालीन जनता दल की सरकार को जिसका नेतृत्व विश्वनाथ प्रताप सिंह कर रहे थे और राज्यपाल जगमोहन को जिनके हाथ में 19 जनवरी 1990 के दिन से ही राज्य की बागडोर आ चुकी थी। आज की कड़ी में हम तत्कालीन राज्यपाल की भूमिका की पड़ताल करेंगे। लेकिन साथ ही दोनों प्रमुख राष्ट्रीय दलों कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को भी अपनी जाँच के दायरे में लेंगे जिन्होंने उसके बाद के 27 सालों तक देश पर राज किया लेकिन ऐसी स्थितियाँ नहीं बना पाए कि कश्मीरी पंडित वापस अपने घरों को जा सकें।
कश्मीरी पंडित : अगर लौटना ही चाहते हैं तो वापस क्यों नहीं जाते?
- विचार
- |
- |
- 31 Feb, 2020

1990 में और उसके बाद हज़ारों कश्मीरी पंडित परिवारों को घाटी से भागना पड़ा। वहाँ ऐसे हालात क्यों पैदा हुए और उनके पीछे 1987 की चुनावी धाँधलियों का क्या रोल था, यह हमने पहली किस्त में जाना। दूसरी किस्त में हमने यह भी देखा कि पाक-समर्थित उग्रवादी जो सरकारी दमन का प्रतिकार करने में सक्षम नहीं थे, उन्होंने अपना ग़ुस्सा असहाय पंडितों पर निकाला और उनको अपना घरबार छोड़ने को बाध्य किया।
जनवरी 1990 में कश्मीरी पंडितों के निष्कासन में राज्यपाल जगमोहन की क्या भूमिका थी, इसपर दो बिल्कुल विपरीत राय हैं। एक राय यह है कि उन्होंने जानबूझकर पंडितों के पलायन को बढ़ावा दिया ताकि कश्मीरी आंदोलन को सांप्रदायिक रंग दिया जा सके और घाटी में बचे कश्मीरी मुसलमानों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए सशस्त्र बलों को खुली छूट दी जा सके।
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश