आज से 71 साल पहले जब कट्टर हिंदूवादी नाथूराम गोडसे ने बिड़ला हाउस में 80 साल के एक कमज़ोर बूढ़े की छाती पर चार गोलियाँ दागी थीं तो वह जान रहा था कि ऐसा करके वह अपने लिए केवल बर्बादी चुन रहा है और लोगों से उसे घृणा के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। लेकिन फिर भी उसने ऐसा किया क्योंकि वह 'हिंदू धर्म से ग़द्दारी करने और मुसलमानों का पक्ष लेने वाले’ गाँधीजी से बदला लेना चाहता था।
गोडसे की ‘ग़लती' को सुधारने में लगे हैं मोदी!
- विचार
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- 30 Jan, 2020

गाँधीजी की हत्या के बावजूद भारत हिंदूराष्ट्र नहीं बना। उलटे नेहरू के नेतृत्व में एक उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष राज्य बना। तो क्या गोडसे ने गाँधी को मारकर कोई ग़लती की थी? क्या गोडसे का निशाना कोई और होना चाहिए था? गाँधी के शहादत दिवस पर पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार नीरेंद्र नागर का विश्लेषण कि किस तरह गोडसे की उस ‘गलती’ को सुधारने में लगे हैं प्रधानमंत्री मोदी।
लेकिन गोडसे यह नहीं जानता था कि ऐसा करके न केवल वह अपना नुक़सान कर रहा है बल्कि अपनी उस राजनीति को भी गहरा आघात पहुँचा रहा है जिसमें वह पला-बढ़ा और जिसको आगे बढ़ाने के लिए वह गाँधीजी की हत्या को ज़रूरी समझता था।
गाँधीजी को मारने से गोडसे को क्या मिला? क्या यह देश पाकिस्तान की तरह धर्मराष्ट्र बन गया? क्या मुसलमानों को, जिनसे वह घृणा करता था, ट्रकों में भरकर पाकिस्तान भेज दिया गया या अरब सागर में डुबो दिया गया? क्या हिंदू महासभा, जिसका वह सदस्य था, वह केंद्र या किसी राज्य में सत्ता में आ गई ताकि देश में भगवा फहराने का उसका सपना पूरा हो सके?
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश