पिछली कड़ी में हमने पढ़ा कि कैसे 1987 के विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ़्रेंस ने केंद्र सरकार के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर गड़बड़ियाँ करवाईं और मुसलिम यूनाइटेड फ़्रंट के विजयी उम्मीदवारों को पराजित घोषित करवा दिया। इस वजह से सरकार से नाराज़ तबक़ों और गुटों का लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से भरोसा उठ गया और उनमें से कुछ ने हथियार उठा लिए। इसी क्रम में 1988 में जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ़्रंट (जेकेएलएफ़) तथा दूसरे उग्रवादी गुटों ने भारत का साथ देने वालों और मुख़बिरों को अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया। 1989 में सौ से भी ज़्यादा सरकारी कर्मचारी आतंकी हिंसा का शिकार बने। इसी दौरान तत्कालीन गृह मंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया को अगवा किया गया और पाँच आतंकवादियों की रिहाई के बाद ही उन्हें छोड़ा गया।
सरकारी दमन के प्रतिशोध में हुआ कश्मीर से पंडितों का निष्कासन?
- विचार
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- 29 Jan, 2020

1989 में कश्मीर में कुछ जाने-माने पंडितों को गोलियों का निशाना बनाया गया। इसके बाद जनवरी 1990 में सभी पंडितों को फ़रमान जारी कर दिया गया कि या तो धर्म बदलें या फिर घाटी से बाहर चले जाएँ। जो नहीं गए, उन्हें जान-माल का नुक़सान उठाना पड़ा। लेकिन ऐसा आख़िर क्यों हुआ? सालों से पड़ोसी की तरह रह रहे पंडित अचानक उग्रवादियों की आँखों को क्यों खटकने लगे?
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश