पिछली कड़ी में हमने पढ़ा कि कैसे 1987 के विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ़्रेंस ने केंद्र सरकार के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर गड़बड़ियाँ करवाईं और मुसलिम यूनाइटेड फ़्रंट के विजयी उम्मीदवारों को पराजित घोषित करवा दिया। इस वजह से सरकार से नाराज़ तबक़ों और गुटों का लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से भरोसा उठ गया और उनमें से कुछ ने हथियार उठा लिए। इसी क्रम में 1988 में जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ़्रंट (जेकेएलएफ़) तथा दूसरे उग्रवादी गुटों ने भारत का साथ देने वालों और मुख़बिरों को अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया। 1989 में सौ से भी ज़्यादा सरकारी कर्मचारी आतंकी हिंसा का शिकार बने। इसी दौरान तत्कालीन गृह मंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया को अगवा किया गया और पाँच आतंकवादियों की रिहाई के बाद ही उन्हें छोड़ा गया।