आज से 30 साल पहले कश्मीर घाटी में कुछ ऐसी ज़हरीली हवा फैली कि लाखों की संख्या में लोगों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा। ये लोग कश्मीरी हिंदू पंडित थे जो घाटी में सालों से रहते आए थे लेकिन अचानक परिस्थितियां ऐसी बदलीं कि अपनी जान और इज़्ज़त बचाने के लिए उन्हें पलायन के अलावा कोई और रास्ता नहीं दिखा।
कश्मीरी पंडित: क्यों करना पड़ा पलायन; 1987 का चुनाव था कारण?
- विचार
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- 26 Jan, 2020

30 साल पहले कश्मीर घाटी से लाखों पंडितों को किन परिस्थितियों में अपना घर-बार छोड़कर भागना पड़ा? बाद के सालों में हालात सुधरे, केंद्र और राज्य में हर रंग की सरकारें भी आईं, फिर भी कोई सरकार निर्वासित पंडितों में यह भरोसा क्यों नहीं पैदा नहीं कर पाई कि वे अपने घरों को वापस जा सकें? कश्मीर से पंडितों के पलायन पर इस सीरीज़ में हम ऐसे ही सवालों के जवाब खोजने का प्रयास करेंगे। पेश है पहली कड़ी।
इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। 1947 में भारत में विलय से पहले और बाद में भी कश्मीर में राजनीतिक उथल-पुथल के कई दौर आए लेकिन कश्मीरी पंडितों के सामने ऐसी नौबत नहीं आई कि उन्हें अपना घर-बार छोड़ना पड़े। ऐसे में जिज्ञासा होना स्वाभाविक है कि आख़िर 1990 में एकाएक ऐसा क्या हुआ कि प्रशासन और पुलिस उग्रवादियों के सामने पंगु हो गए? क्या यह संभव था कि प्रशासन ज़्यादा सख़्त होता तो यह पलायन रोका जा सकता था? कहीं ऐसा तो नहीं कि कमज़ोर प्रशासन ने ही उनके पलायन को बढ़ावा दिया क्योंकि वह उन्हें सुरक्षा नहीं दे पा रहा था? और अगर ऐसा ही था तो स्थिति में सुधार होने के बाद किसी सरकार ने पंडितों की घर वापसी के कारगर उपाय क्यों नहीं किए?
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश