कोरोना वायरस संक्रमण के ख़तरे के चलते जारी लाॅकडाउन की वजह से रामनवमी बिना किसी राजनैतिक, धार्मिक और सामाजिक शोरशराबे, भीड़भाड़ और कर्मकांडी तामझाम के मनी। ऐसे में हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों के लिए एक लिहाज से कोरोना वायरस के बहाने मिली यह शांति राम नाम के माध्यम से आत्मसाक्षात्कार और अपने भीतर की आध्यात्मिकता को जगाने का अच्छा मौक़ा है। इसका रास्ता अलबत्ता रामानंद सागर के रामायण सीरियल से बाहर खोजा जाए तो बेहतर है।

समूची हिंदी पट्टी में ‘राम-राम’ सदियों से आम लोगों के बीच आपसी अभिवादन का सबसे प्रचलित तरीक़ा रहा है जो धर्म और जाति की सीमाओं से परे हिंदू-मुसलमान सभी समुदायों-जातियों, सब में बराबर लोकप्रिय रहा है। लेकिन अब ‘राम-राम’ और ‘जै सियाराम’ की जगह ‘जय श्रीराम’ का इस्तेमाल ज़्यादा होने लगा है, बाक़ायदा ज़ोर देकर। पारस्परिक अभिवादन के लिए कम, दूसरों पर दबंगई दिखाने के लिए ज़्यादा।
राम आम धार्मिक हिंदू के लिए तो भगवान हैं, लेकिन राम का किरदार अपनी तमाम ख़ूबियों की वजह से नास्तिकों और दूसरे धर्म के मानने वालों, साहित्य, संस्कृति और सामाजिक कर्म से जुड़े लोगों के बीच भी हमेशा से बहुत लोकप्रिय और आदरणीय रहा है।