इन्सान का दिल एक ऐसी शै (चीज) है, जो भावनाओं की ख़ुराक पर पलता है। भीतर जैसी भावना को जगह दी जाए, धीरे-धीरे दिल उसी तरफ झुकने लगता है और इस झुकाव की झलक व्यक्ति के प्रत्यक्ष सामाजिक आचरण में भी मिलती रहती है। दिल के भीतर जैसे स्वाभाविक तौर पर प्रेम का झरना फूटता है, वैसे ही नफ़रत का नाला भी बह सकता है। यह उस इन्सान पर निर्भर करता है कि वह किसे प्राथमिकता देता है।