श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय का अचानक यह कहना सबको हैरान करता है कि मंदिर रामानंद संप्रदाय का है, शैव, शाक्त और संन्यासियों का नहीं। अयोध्या के नए मंदिर और नई मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा की पूजन विधि हफ्ते भर की है और 16 जनवरी से ही शुरू होगी जिसमें 22 को प्रधानमंत्री प्राण प्रतिष्ठा करेंगे। राममंदिर आंदोलन को दुनिया भर के सारे हिंदुओं को एकजुट करने के अभियान के तौर पर चलाने और प्राण प्रतिष्ठा में सभी 125 संत परंपराओं के महात्माओं, सभी तेरह अखाड़ों और सभी षड-दर्शन के महापुरुषों-धर्माचार्यों को न्यौता देने के बाद यह कहने की ज़रूरत क्यों हुई, यह कोई भी समझ सकता है।
प्राण प्रतिष्ठा: चारों शंकराचार्यों के विरोध के मायने और चंपत राय के दावे
- विचार
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- 9 Jan, 2024

चंपत राय ने किस आधार पर कहा कि मंदिर रामानंद संप्रदाय का है, शैव, शाक्त और संन्यासियों का नहीं? आख़िर ऐसा कहने के पीछे उनका मक़सद क्या है?
जिस तरह से चारों शंकराचार्यों ने कार्यक्रम के बहिष्कार की घाोषणा के साथ प्रधानमंत्री द्वारा प्राण प्रतिष्ठा करने के कार्यक्रम पर सवाल उठाए उसके बाद इस तरह की सफाई देनी ज़रूरी हो गई थी। शंकराचार्य कोई पोप नहीं हैं। हिन्दू धर्म में कोई पोप, कोई खलीफा नहीं है। लेकिन शंकराचार्य की एक लंबी और मज़बूत परंपरा है, बौद्ध मत के आगे नतमस्तक और बिखरे सनातन समाज को पुनर्जीवित और एकजुट करने से लेकर नए दर्शन की स्थापना और हिंदुस्तान के चारों कोनों में मंदिर स्थापना के साथ समाज को जगाने की प्रेरणा देने वाली। जाहिर तौर पर रामानंद और माध्वाचार्य जैसों की भी बहुत मज़बूत और लंबी परंपरा रही है। शैव, शाक्त, लोकायत, बौद्ध, जैन, नानक, कबीर, रविदास और लिंगायत जैसी परंपराओं की भी परंपरा रही है। जिस किसी ने बड़ा समाज और धर्म सुधार आंदोलन किया उसकी अपनी स्वतंत्र परंपरा मान्य हुई है। इनका टकराव भी हुआ है और मेलमिलाप भी।