भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और चीन के रक्षा मंत्री वेई फेंघी की मॉस्को में दो घंटे तक बात हुई लेकिन उसका नतीजा क्या निकला? दोनों अपनी-अपनी टेक पर अड़े रहे। फेंघी कहते रहे कि वे चीन की एक इंच ज़मीन नहीं छोड़ेंगे और यही बात भारत की ज़मीन के बारे में राजनाथ भी कहते रहे। दोनों एक-दूसरे पर उत्तेजना फैलाने का आरोप लगाते रहे, फिर भी दोनों सारे मामले को बातचीत से हल करने की इच्छा दोहराते रहे।
संसद में सरकार को बताना ही होगा कि सीमा पर क्या हालात हैं
- विचार
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- 7 Sep, 2020

यदि चीनी रक्षा मंत्री हमारे रक्षामंत्री से बार-बार मिलने का अनुरोध कर सकते हैं और उनसे मिलने के लिए उनके होटल में आ सकते हैं तो सारे विवाद को आसानी से हल भी किया जा सकता है। जब बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल के साथ सीमा-विवादों को कुछ ले-देकर सुलझाया जा सकता है तो चीन के साथ क्यों नहीं सुलझाया जा सकता?
क्या आपने कभी सोचा कि दोनों देशों के नेता इस मुद्दे पर खोए-खोए से क्यों लगते हैं ? जहां तक भारत का सवाल है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषणों में चीन का नाम एक बार भी नहीं लिया। उन्होंने गलवान घाटी में शहीद हुए सैनिकों को भावभीनी श्रद्धांजलि दी, उन पर हुए हमले की भर्त्सना की लेकिन साथ में यह भी कह दिया कि चीन ने हमारी सीमा में कोई घुसपैठ नहीं की और हमारी किसी चौकी पर कब्जा भी नहीं किया। तो उनसे अब संसद में पूछा जाएगा कि फिर आखिर झगड़ा किस बात का है?