पाँच विधानसभा चुनाव के नतीजे आते ही तमाम ‘सेक्युलर बुद्धिजीवियों’ (लिबरल्स) का एक तबका कांग्रेस से फिर ख़फ़ा हो गया है। उसके निशाने पर एक बार फिर राहुल गाँधी हैं जिनकी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से उपजे माहौल ने इन बुद्धिजीवियों को पुनर्विचार के लिए मजबूर किया था और कर्नाटक और हिमाचल में कांग्रेस की जीत ने राहुल या गाँधी परिवार की उनकी तमाम आलोचनाओं पर ताला लगा दिया था।
सामाजिक न्याय के ‘राहुल-पथ’ पर बढ़ती कांग्रेस से घबराये ‘लिबरल्स’ का प्रलाप!
- विचार
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- 6 Dec, 2023

देश की बहुसंख्यक आबादी के भविष्य को सँवारने वाली योजनाएँ, नाउम्मीदी कैसे जगा सकती हैं या प्रतिगामी विचार कैसे हैं?
अब छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की हार ने उन्हें फिर मौक़ा दे दिया है। इस बार उनकी आलोचना में एक नया अस्त्र है। यह अस्त्र है सामाजिक न्याय को लेकर बनी कांग्रेस की स्पष्ट लाइन जो उनके मुताबिक़ ‘कांग्रेस के डीएनए’ के ख़िलाफ़ है। ‘जितनी आबादी-उतना हक़’ का राहुल गाँधी का नारा उन्हें बुरी तरह बेचैन कर रहा है। इस वर्ग के प्रतिनिधि के तौर पर रामचंद्र गुहा को देखा जा सकता है जिन्होंने प्रख्यात पत्रकार करण थापर को दिये अपने यूट्यूब इंटरव्यू में साफ़ कहा कि जाति जनगणना एक प्रतिगामी विचार है। यह भविष्य को लेकर कोई उम्मीद नहीं जगाता।