अब तक की जाँच से यह साफ़ हो गया है कि 13 दिसंबर में संसद में घुसकर नारेबाज़ी करने वाले युवा और उनके साथियों का न कोई आपराधिक रिकॉर्ड है और न ही वे किसी संगठन के कार्यकर्ता हैं। इनमें से ज़्यादातर उच्च शिक्षित बेरोज़गार हैं और देश के हालात से चिंतित हैं। भगत सिंह को अपना आदर्श मानने वाले इन युवाओं को अच्छी तरह पता था कि पकड़े जाने पर उनके साथ क्या होगा और वे मानसिक रूप से इसकी कीमत चुकाने के लिए तैयार होकर संसद में गये।