अब तक की जाँच से यह साफ़ हो गया है कि 13 दिसंबर में संसद में घुसकर नारेबाज़ी करने वाले युवा और उनके साथियों का न कोई आपराधिक रिकॉर्ड है और न ही वे किसी संगठन के कार्यकर्ता हैं। इनमें से ज़्यादातर उच्च शिक्षित बेरोज़गार हैं और देश के हालात से चिंतित हैं। भगत सिंह को अपना आदर्श मानने वाले इन युवाओं को अच्छी तरह पता था कि पकड़े जाने पर उनके साथ क्या होगा और वे मानसिक रूप से इसकी कीमत चुकाने के लिए तैयार होकर संसद में गये।
बेरोज़गारी के मुद्दे को ‘अदृश्य’ करने से विस्फोटक होगा युवा आक्रोश!
- विचार
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- पंकज श्रीवास्तव
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- 18 Dec, 2023

इस घटना के बाद ज़्यादातर लोगों ने यह कहकर सुकून जताया कि आरोपित लड़के ‘मुसलमान’ नहीं हैं वरना बीजेपी पूरे देश में किस कदर सांप्रदायिक उन्माद फैलाती, उसकी महज़ कल्पना की जा सकती है। संसद परिसर में ‘तानाशाही मुर्दाबाद’ और ‘इंकलाब ज़िंदाबाद’ के नारे लगाने वाले इन युवाओं के प्रति एक तरह की सहानुभूति भी देखी जा रही है। उनके घर वालों ने भी कहा है कि वे बेरोज़गारी से परेशान थे और दूसरे जानने वाले भी उन्हें शरीफ़ और पढ़े-लिखे नौजवान ही बता रहे हैं। अपने बयानों के लिए चर्चित रहने वाले जस्टिस मार्कंडेय काटजू सहित तमाम लोगों ने इन ‘दिग्भ्रमित’ युवाओं के साथ नरमी से पेश आने की अपील की है, हालाँकि पुलिस ने उन पर यूएपीए की धारा लगाकर उन्हें आतंकवादियों के समकक्ष रख दिया है।