loader

राहुल गांधी की सियासी ‘लिंचिंग’ पर आमादा बीजेपी

राहुल गांधी ने ‘लिंचिंग’ पर मुंह खोला ही था, ट्वीट (चूं-चूं की आवाज़ निकालना समझें) किया ही था कि वे खुद लिंचिंग के घेरे में आ गये। मीडिया, सोशल मीडिया, टीवी चैनल हर जगह राहुल गांधी ही नहीं पूरे गांधी परिवार पर ‘हमले’ शुरू हो गए। बीजेपी नेता तो ऐसे राहुल गांधी के पीछे पड़ गये हैं मानो वे उनकी ज़ुबान ही खींच लेना चाहते हों। 

निहत्थे पर भीड़ की क्रूरता मॉब लिंचिंग होती है। भीड़ उसे ख़ामोश कर देती है जिसकी आवाज़ उसे नापसंद होती है या फिर जिसके अस्तित्व को भीड़ बर्दाश्त करना नहीं चाहती। इसी तर्ज पर सियासी दुनिया में विपक्ष पर सत्ता पक्ष की ओर से विपक्ष की आवाज़ को ख़ामोश कर देने के लिए चारों ओर से किया जा रहा हमला भी राजनीतिक बर्बरता है, मॉब लिंचिंग है।

ताज़ा ख़बरें

राहुल गांधी ने गलत क्या कहा?

राहुल गांधी की यह बात बिल्कुल सच है- “2014 से पहले ‘लिंचिंग’ शब्द सुनने में भी नहीं आता था।“ लेकिन, सच यह भी है कि लिंचिंग की घटनाएं हुआ करती थीं। लेकिन, 2014 के पहले और बाद की लिचिंग की घटनाओं में बहुत बड़ा फर्क है। इस फर्क को समझे बगैर मॉब लिंचिंग की नये नफरती दौर को समझा नहीं जा सकता।

2014 से पहले घटने वाली मॉब लिंचिंग की प्रकृति को समझने के लिए कुछेक उदाहरणों पर गौर करें-

  • डायन समझकर महिला की भीड़ के हाथों हत्या
  • चोर समझकर या डकैत पकड़कर जान ले लेना
  • 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भीड़ की ओर से सिखों का कत्लेआम 
  • ईसाई धर्म का प्रचार करने के आरोप में ग्राह्म स्टेन्स को बच्चों समेत जिन्दा जला डालने जैसी घटनाएं
  • गोधरा में ट्रेन रोककर पूरी बोगी को भीड़ द्वारा आग के हवाले कर देना। 
इन घटनाओं में पहली दो घटनाएं सामाजिक क्रूरता के उदाहरण हैं तो तीसरी घटना धार्मिक नफरत और बदले की भावना का उदाहरण है। चौथी घटना धर्मांतरण के विरोध में प्रायोजित मॉब लिंचिंग है। जबकि, गोधरा की मॉब लिंचिंग कट्टरता, धर्मांधता, बदले की भावना और देश को दंगों में झोंक देने की साजिश का उदाहरण है। आखिरी तीनों घटनाओं में राजनीति प्रमुख तत्व है।
1992 में बाबरी विध्वंस भी मॉब लिंचिंग का उदाहरण है जिसकी प्रतिक्रिया में मुंबई में सीरीज़ ब्लास्ट और आतंकी हमलों का युग आया। 2013 तक देश इसका दंश भुगतता रहा।
2014 के बाद की मॉब लिंचिंग की घटनाओं की प्रकृति समझने के लिए इन घटनाओं पर गौर करें-
  • 2015 में अखलाक से लेकर पहलू ख़ान तक की मॉब लिंचिंग की घटनाएं जो गो रक्षा के नाम पर हुई।
  • लव ज़िहाद के नाम पर मॉब लिंचिंग की घटनाएं देशभर में लगातार हुईं। किसी घटना में जान गयी, किसी घटना में जान बच गयी।
  • ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने की जिद पर होने वाली मॉब लिंचिंग की घटनाएं। इनमें झारखण्ड के सरायकेला के खरसवां में हुई तवरेज की मॉब लिंचिंग शामिल है।
  • किसान आंदोलन के दौरान और ताजातरीन पंजाब के अमृतसर और कपूरथला में हुई मॉब लिंचिंग की घटनाएं सिख धर्म गुरू की बेअदबी के नाम पर हुईं।

2014 के बाद जो मॉब लिंचिंग की घटनाएं हो रही हैं उनमें खास बात यह है कि ज्यादातर घटनाएं एक धर्म विशेष को लक्ष्य करके घटी हैं। इन घटनाओं में हमलावरों का संबंध सत्ताधारी दल और उसकी राजनीति से रहा है। ऐसी घटनाओं की निन्दा कभी खुलकर सत्ताधारी दल ने नहीं की। लिहाजा ये घटनाएं राजनीतिक उद्देश्य के साथ धार्मिक नफरत फैलाने के उदाहरण हैं। 

यहां तक कि जिन लोगों ने मॉब लिंचिंग की इन घटनाओं का विरोध किया, उन्हें अवार्ड वापसी गैंग, अर्बन नक्सली जैसे तमगे दिए गये। 2014 के बाद मॉब लिंचिंग की घटनाओं के दौरान और उसके बाद पुलिस की भूमिका मॉब लिंचिंग की मदद करने वाली पायी गयी है। 

Rahul Gandhi On Lynching BJP reacts - Satya Hindi

पंजाब में जन्म लेती ख़तरनाक प्रवृत्ति

सिख धर्म की बेअदबी के नाम पर किसान आंदोलन के दौरान हुई मॉब लिंचिंग या अमृतसर और कपूरथला में हुई मॉब लिंचिंग नयी ख़तरनाक प्रवृत्ति है। इसका मकसद भी समाज में नफ़रत और इसकी सियासत को मजबूत करना है। 2014 के बाद की मॉब लिंचिंग में सिर्फ भीड़ नहीं है। भीड़ के साथ नफरती ताकत है। यह धार्मिक कट्टरता लिए मजबूत राजनीतिक ताकत भी है जो अपने-अपने हित साधती है। 

सवाल यह है कि क्या मॉब लिंचिंग की घटनाओं का विरोध नहीं किया जाए? पंजाब में हुई मॉब लिंचिंग को लेकर पंजाब से कोई आवाज़ नहीं उठ रही। साजिश की बात सभी कर रहे हैं लेकिन इस आड़ में कानून को हाथ में लेने पर सवाल उठाने से सियासतदां बच रहे हैं।
मगर, शेष पंजाब में जो 2014 के बाद से मॉब लिंचिंग होती रही है उसका विरोध कभी भी बीजेपी की ओर से या फिर प्रधानमंत्री या गृहमंत्री की ओर से नहीं किया गया। उल्टे बीजेपी नेता कांग्रेस के जमाने में मॉब लिंचिंग की घटनाओं का रक्षा कवच लेकर वर्तमान मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर उठते सवालों का जवाब देने से बचते रहे।

राजीव के बयान से नहीं भड़का दंगा

राहुल गांधी के बयान के बाद बीजेपी राजीव गांधी को ‘फादर ऑफ मॉब लिंचिंग’ बताने में जोर-शोर से जुटी है। लेकिन क्या यह सच है? दिल्ली में दंगे 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए। राजीव गांधी ने वह कुख्यात बयान- “जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है।”- 19 नवंबर को दिया था। तब दिल्ली शांत हो चुकी थी। 

राजीव के उस बयान को पूरा सुनें तो उसका मकसद जल्द शांति कायम होने के लिए जनता की तारीफ करना था। इस बात से अगर सहमत नहीं भी हुआ जाए तो यह कतई नहीं कहा जा सकता कि राजीव गांधी के बयान के कारण दिल्ली में दंगे हुए। अगर राजीव गांधी के बयान के बाद सिख विरोधी दंगा या कत्लेआम हुआ होता तो राजीव गांधी को ‘फादर ऑफ मॉब लिंचिंग’ कहे जाने की बात समझ में आती। 

1984: कांग्रेस ने मांगी है माफी

जब बीजेपी के नेता 1984 का जिक्र करते हैं तो वे भूल जाते हैं कि कांग्रेस ने इस घटना पर बारंबार माफी मांगी है। कभी मनमोहन सिंह तो कभी सोनिया गांधी ने। लेकिन, इसी घटना को सही ठहराने वाले नाना जी देशमुख के बयान पर कभी आरएसएस ने क्या माफी मांगी है? दिल्ली दंगे के आरोपियों में दर्जनों मामले उन लोगों पर दर्ज हुए जो आरएसएस या बीजेपी से जुड़े थे। 

2014 के बाद मॉब लिंचिंग की घटना 2014 के पहले के उदाहरणों से इस मायने में वीभत्स है कि हर एक मॉब लिंचिंग की घटनाओं के जरिए अल्पसंख्यक समुदाय को डराने की कोशिशें हुई हैं। धर्मविशेष के लोगों पर लगातार निशाने साधे गये हैं। अब जब राहुल गांधी ने सच बोलने का साहस दिखाया है तो ये शक्तियां एक बार फिर राहुल पर हमलावर हैं।

Rahul Gandhi On Lynching BJP reacts - Satya Hindi

संरक्षण क्यों दे रही है बीजेपी?

अनुराग ठाकुर, कपिल मिश्रा और प्रवेश वर्मा के बयानों को क्यों नजरअंदाज किया जाए जिनके बयानों के बाद दिल्ली में दंगे भड़के थे? खुले आम कानून को हाथ में लेने की बातें इन नेताओं ने की थी। अनुराग ठाकुर ने ‘देश के गद्दारों को’ नारा लगवाते हुए बारंबार लोगों से कहवाया था ‘गोली मारो....को’। कपिल मिश्रा ने पुलिस की मौजूदगी में कहा था कि डोनाल्ड ट्रंप के चले जाने के बाद वे खुद दिल्ली की सड़क जबरदस्ती खाली कराएंगे। तब सीएए के विरोध में आंदोलनकारी धरने पर बैठे थे।

विचार से और ख़बरें

इस बयान के बाद ही दिल्ली में दंगा भड़का था। प्रवेश वर्मा ने कहा था कि अगर बीजेपी हार गयी तो शाहीन बाग वाले हिन्दू महिलाओं से घर घुसकर बलात्कार करेंगे। बीजेपी ने इन नेताओं पर कार्रवाई करने के बजाए ऊंचे-ऊंचे ओहदे दिए। 

2014 के बाद मॉब लिंचिंग की घटनाओं के लिए जिम्मेदार ऐसे ही वातावरण की ओर ध्यान दिलाना चाहते हैं राहुल गांधी। इस पर बीजेपी का बौखला जाना कोई अस्वाभाविक घटना नहीं है। राहुल गांधी ने बीजेपी की सियासत के नफरती आधार पर हमला बोला है तो उन पर जवाबी हमले अप्रत्याशित नहीं हैं। कारण चाहे जो हो राहुल गांधी के बयान के बाद उनकी सियासी लिंचिंग पर आमादा हो गयी है बीजेपी।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
प्रेम कुमार
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें