सत्ता के गर्भ में आकार ले रहे अज्ञात भय की किसी अपेक्षित घड़ी में जन्म लेने की प्रतीक्षा तो थी पर प्रसव-पीड़ा समय-पूर्व ही होती नज़र आ रही है! आश्चर्य यह है कि जनता भी आश्चर्यचकित नहीं है! उसके पीछे कारण भी हैं। ‘नोटबंदी’ और ‘लॉक डाउन’ जैसे अचानक से फटने वाले बादलों की आपदा से गुज़र जाने के बाद जनता भी ‘अनुभवी और जानकार’ बन गई है। जो कुछ भी चलता हुआ दिखाई दे रहा है वह ‘जो आगे हो सकता है ‘से अलग नहीं माना जा सकता। आगे होने वाला एक लंबे काल तक चल सकता है। आशंकाएं निर्मूल साबित हो जाएँ तो उससे ज़्यादा सुखद और क्या हो सकता है? लगता नहीं!