साहस का काम था जिसे राहुल गांधी ने कर दिखाया। पिछले पचहत्तर सालों में किसी भी पार्टी का बड़ा से बड़ा नेता यह काम नहीं कर पाया था। समस्या की जड़ तक पहुँचने के लिए शायद ज़रूरी भी हो गया था। राजधानी दिल्ली में सैंकड़ों (या हज़ारों?) की गिनती में उपस्थित सभी तरह के पत्रकारों के मान्यता प्राप्त प्रतिनिधियों से राहुल गांधी ने एक सवाल पूछ लिया और जो जवाब मिला उससे वे हतप्रभ रह गए। कल्पना की जा सकती है कि अगर वही सवाल संघ प्रमुख या प्रधानमंत्री (अगर वे राहुल की तरह प्रेस कांफ्रेंस करने का तय करें) कभी पूछ लें तो पत्रकार कितनी मुखरता से तो जवाब देंगे और प्रश्नकर्ताओं के चेहरों पर किस तरह की प्रतिक्रिया या चमक नज़र आएगी!