प्रधानमंत्री मोदी ने वंदे भारत ट्रेन को बड़ी उपलब्धि बताया तो रेल मंत्री पीयूष गोयल हास्यास्पद स्तर पर उतरते हुए यह कह गए कि यह ट्रेन आतंकियों को क़रारा जवाब है।
इस मौक़े पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि उन्हें बताया गया है कि रेलवे ने क़रीब सवा लाख नौकरियाँ दी हैं। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि वंदे भारत ट्रेन दिल्ली से वाराणसी की 750 किलोमीटर की दूरी लगभग 8.30 घंटे में तय कर लेगी।
सब कुछ हो रहा पहली बार!
संकेतों का अपना महत्व होता है। सबसे तेज, विश्व में पहली बार, धरती पर पहली बार, 70 साल में पहली बार घोषित करना इस सरकार का शगल है, इसलिए तमाम चीजें पहली बार बताने की कोशिश की जा रही हैं। उसमें गतिमान भी पहली बार है, वंदे भारत भी पहली बार है। यह भी प्रचारित किया जा रहा है कि यह इंजन रहित ट्रेन है, लेकिन इंजन के बगैर कोई ट्रेन नहीं चल सकती। रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इसके हर डिब्बे में इंजन लगा हुआ है, इसलिए अलग से पॉवर लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन यह भी पहली बार सही।
लेकिन यह ट्रेन वाराणसी से राष्ट्रीय राजधानी लौटते समय शनिवार तड़के उत्तर प्रदेश में टुंडला रेलवे स्टेशन के पास रुक गई। रेलवे मंत्रालय के अनुसार, किसी पशु के रेलवे लाइन से गुजरने के दौरान ट्रेन उसके ऊपर चढ़ गयी, इसलिए इसे रोकना पड़ा। मंत्रालय के मुताबिक़, ट्रेन अभी ट्रायल रन पर है और 17 फ़रवरी से इसे आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा।
देर से चल रहीं ट्रेनें
मोदी के सत्ता संभालते ही रेलवे में कई बड़े हादसे हुए। एक के बाद एक हुए हादसों के बाद रेलवे ने ‘दुर्घटना से देर भली’ का फ़ॉर्मूला अपना लिया। पहले जहाँ कोहरा, बारिश आदि वजहों से ट्रेन में देरी होती थी, इस समय सामान्यतया भारत में हर मौसम में सभी ट्रेनें देरी से चलने लगी हैं।
हालात यह हैं कि अगर कोई ट्रेन समय से पहुँच गई तो उसके यात्री खुद की किस्मत और अपने आराध्य के प्रति आभार जताते हैं, वर्ना ट्रेन में अतिरिक्त ख़र्च और समय लगाना मज़बूरी है।
चार्ट मेंटेन करें या ट्रेन चलाएँ?
ट्रेन में देरी की क्या वजह है, इसके बारे में एक ट्रेन चालक, जिन्हें अब उनकी आत्मसंतुष्टि के लिए लोको पायलट कहा जाने लगा है, ने बताया कि हम लोगों को 300 किलोमीटर की यात्रा में दो पन्ने का कॉशन चार्ट मिलता है। उसमें किलोमीटर तय होते हैं कि कहाँ 10 किलोमीटर, कहाँ 30 किलोमीटर और कहाँ 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से गाड़ी चलानी है। लोको पायलट ने कहा था कि वे आजकल ट्रेन चलाने से ज़्यादा कॉशन चार्ट मेंटेन करने के लिए मेहनत करते हैं, जिससे गाड़ी पलट न जाए।
- कॉशन चार्ट की समस्या तब बहुत ज़्यादा हो गई, जब इस सरकार के शुरुआती कार्यकाल में दनादन रेल दुर्घटनाएँ और बड़े पैमाने पर मौतें हुईं। उसके बात से पूरी रेल व्यवस्था कॉशन चार्ट पर ही चल रही है।
- हालत यह हैं कि मौजूदा सरकार कर्मचारियों में कटौती कर और इससे वेतन बचाकर रेलवे को मालामाल बनाने की कवायद कर रही है। और इस मूर्खता का परिणाम यह हुआ है कि रेलवे नाम की दुधारू गाय की सेवा सत्कार करने वाले सेवक ही नहीं हैं।
भविष्य के साथ हो रहा खिलवाड़
चुनाव नज़दीक आते ही रेल मंत्री पीयूष गोयल ने घोषणा कर दी कि अगले 2 साल में रेलवे में 4,00,000 भर्तियाँ की जाएँगी। हक़ीक़त यह है कि इस सरकार के कार्यकाल में 2018 में रेलवे भर्ती बोर्ड ने 1,27,278 रिक्तियाँ भरने के लिए कंप्यूटरीकृत परीक्षा का आयोजन किया था, जिसमें सहायक लोको पायलट और टेक्नीशियन स्तर के 64,371 पद और लेवल-1 के 62,907 पद शामिल थे। इसके अलावा 2016 में एक बार 18,252 पद भरने के लिए रिक्तियाँ निकाली गईं। 2016 और 2018 में जिन बच्चों ने रेलवे की भर्ती परीक्षा पास कर ली, उन्हें आज की तारीख़ तक ज्वाइनिंग लेटर नहीं मिल पाया है।
मोदी सरकार की विफलताओं की लंबी फेहरिस्त में रेलवे की दुर्दशा भी शामिल है, जिसने आम नागरिकों को पिछले 4 साल में सबसे ज़्यादा परेशान किया है।
घोषणाओं से ही है उम्मीद
किराये में भारी-भरकम बढ़ोतरी, सुविधाओं का अभाव, ठेके पर काम दे दिए जाने से रेल में कंबल, तकिया, चद्दर गंदी मिलने से लेकर बासी, ख़राब गुणवत्ता वाला जहरीला खाना झेलना पड़ रहा है। लेकिन सरकार को अब भी उम्मीद है कि वह घोषणाओं की बदौलत 2019 के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने में सफल हो जाएगी।
रेलवे ने प्रधानमंत्री मोदी सरकार के कार्यकाल में अब तक कोई बड़ी भर्ती कर नियुक्ति नहीं की है। मोदी को जिन लोगों ने बताया है कि रेलवे ने सवा लाख लोगों की भर्तियाँ की हैं, वह कोरा झूठ है। जिन अभ्यर्थियों को सवा लाख सीटों पर चयनित किया गया है, अभी भी ज्वाइनिंग लेटर पाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
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