गुजरात और दिल्ली की सत्ता में निर्विघ्न इक्कीस साल गुज़ार लेने, विपक्ष को अपनी ज़रूरत जितना पंगु बना देने और पार्टी के आंतरिक असंतोष को ‘मार्गदर्शक मंडल ‘ में सफलतापूर्वक रवाना कर देने के बावजूद नरेंद्र मोदी को उस कांग्रेस की ओर से अपने लिए इतनी चुनौती क्यों महसूस करना चाहिए जिसे कि वे मई 2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के पहले ही लगभग समाप्त कर चुके थे?