दस मार्च को प्राप्त होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजे अगर भाजपा और संघ की उम्मीदों के ख़िलाफ़ चले जाते हैं (जैसी कि हाल-फ़िलहाल आशंका ज़ाहिर की जा रही है) और जीत ‘कमंडल’ के बजाय ‘मंडल’ की हो जाती है तो उस स्थिति में क्या भारत को एक हिंदू राष्ट्र घोषित करने की दिशा में संघ-भाजपा का हिंदुत्व का कार्ड निष्प्रभावी साबित हो गया मान लिया जाएगा? क्या तब हिंदुत्व का पूरा एजेंडा ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा? या उसका ज़्यादा आक्रामक रणनीति के साथ परीक्षण किया जाएगा, देश के कोने-कोने को हरिद्वार जैसी धर्म संसदों से पाट दिया जाएगा?