दस मार्च को प्राप्त होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजे अगर भाजपा और संघ की उम्मीदों के ख़िलाफ़ चले जाते हैं (जैसी कि हाल-फ़िलहाल आशंका ज़ाहिर की जा रही है) और जीत ‘कमंडल’ के बजाय ‘मंडल’ की हो जाती है तो उस स्थिति में क्या भारत को एक हिंदू राष्ट्र घोषित करने की दिशा में संघ-भाजपा का हिंदुत्व का कार्ड निष्प्रभावी साबित हो गया मान लिया जाएगा? क्या तब हिंदुत्व का पूरा एजेंडा ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा? या उसका ज़्यादा आक्रामक रणनीति के साथ परीक्षण किया जाएगा, देश के कोने-कोने को हरिद्वार जैसी धर्म संसदों से पाट दिया जाएगा?
कैसी होगी यूपी चुनाव के बाद हिंदुत्व की राजनीति ?
- विचार
- |
- |
- 14 Feb, 2022

उत्तर प्रदेश के नतीजों की प्रतीक्षा एक अज्ञात भय के साथ इसलिए की जानी चाहिए कि भाजपा को मिलने वाली सीटों की संख्या और पड़ने वाले कुल मतों में उसका हिस्सा भारत को एक हिंदू राष्ट्र में तब्दील करने की उसकी महत्वाकांक्षाओं के पक्ष (या विपक्ष) में जनता के समर्थन का प्रतिशत भी तय करने वाला है।
चुनाव परिणामों को दलों की हार-जीत के गणित से इतर भाजपा और संघ के हिंदू राष्ट्रवाद की अवधारणा के साथ जोड़कर देखने की शुरुआत इसलिए कर देना चाहिए कि जो कुछ भी दस मार्च को पाँच राज्यों में तय होगा उसी के बीजों से 2024 के लोक सभा के चुनाव और उसके भी पहले अन्य ग्यारह राज्यों की विधानसभाओं की फसलें भी काटी जाने वालीं हैं।